डा0 वन्दना, बैंगलुरु
अवसाद क्या है? इसके लक्षण क्या हैं? यह कैसे हो जाता है? आदि जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि हमें इसके बारे में क्यों जानना है। क्या यह गंभीर समस्या है? क्या यह बीमारी गंभीर है? जो मुझे या मेरे रिश्तेदारों को परेशान कर सकती है?
हम कैसे पता करें? जो व्यक्ति उदास या निराश महसूस करता है या शरीर में बहुत दर्द है वह सिर्फ आम दिनचर्या की थकान है, या अवसाद की शुरुआत है। अवसाद सिर्फ एक मानसिक रोग है? या इसमें शरीर में भी कुछ बदलाव आता है? इसका इलाज क्या है? या यह लाइलाज बीमारी है?
इसमें होम्योपैथी का क्या योगदान है? क्या होम्योपैथी से मुझे निदान मिल सकता है? इस बीमारी में हम अपनी मदद कैसे कर सकते हैं? किसी अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की मदद कैसे कर सकते हैं? इस लेख से आप इन सब के बारे में जानेंगे।
दुखी मन या उदास महसूस करना और अवसाद में अंतर-
आजकल की भागदौड़ वाली जिंदगी में, व्यक्ति इतना व्यस्त हो गया है कि वह अपने को भी ठीक से समय नहीं दे पता और काम की अधिकता के कारण बहुत से लोग छोटी-छोटी बातों में भी बहुत जल्दी घबरा जाते हैं या चिंतित हो जाते हैं। वैसे तो किसी भी व्यक्ति का चिंता करना एक सामान्य सी बात है। हर किसी के जीवन में ऐसे मौके आते हैं जब वह परेशान या दुखी महसूस करता है और ऐसे होने की आम तौर पर कुछ वजह होती है। पर यह रोजाना की दिनचर्या पर अधिक प्रभाव नहीं डालता है। इससे व्यक्ति एक दो सप्ताह में उबर भी जाता है।
पर अगर यह भावनाएं हफ्तों या महीना तक बरकरार हैं या स्थिति और बिगड़ रही है और आपके जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित करने लगे तो आपको अवसाद हो सकता है। ऐसे में व्यक्ति को मदद की आवश्यकता है। जीवन में थोड़ा तनाव या किसी कार्य को पूर्ण करने का स्ट्रेस होना फायदेमंद होता है। क्योंकि वह हमें कार्य को अच्छे से और समय पर पूर्ण करने में मदद करता हैं। परंतु जब यह तनाव और स्ट्रेस हमारे नियंत्रण में न रहे तो, वह हमारे लिए घातक है, और अवसाद का रूप ले सकता है।
अवसाद कुछ लोगों में थोड़े समय के लिए ही रहता है तो कुछ लोगों में काफी लंबे समय तक रहता है। एक समय बाद ऐसे लोगों का मन जिंदगी से भर जाता है। किसी काम में उनका मन नहीं लगता। उनको अकेला रहना ज्यादा अच्छा लगता है। जिस कारण उनकी दैनिक दिनचर्या प्रभावित होती है। इसको जानें और इसे कैसे बाहर निकाला जा सकता है यह हम इस लेख द्वारा समझेंगे। जिससे हम अपनी और अपने जानने वालों की मदद कर सकें।
मनोविश्लेषकों के अनुसार प्राकृतिक तौर पर महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अवसाद (डिप्रेशन) की शिकार अधिक होती हैं। अनेक प्रकार के अवांछित दाबावों के कारण वह इसकी शिकार होती हैं। प्राय माना जाता है कि महिलाओं को डिप्रेशन जल्दी आ घेरता है। इसके विपरीत पुरुष अकसर अपनी अवसाद की अवस्था को स्वीकार करने में संकोच करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 30 करोड़ से अधिक लोग इस समस्या से पीड़ित हैं। भारत में यह आंकड़ा 5 करोड़ से अधिक है जो की एक गंभीर समस्या है। लगभग दो-से-आठ प्रतिशत लोग जो अवसाद से ग्रसित हैं, वह आत्महत्या से मरते हैं। वर्ड मेंटल हेल्थ के सर्वे के दौरान, 17 देश में पाया गया कि 20 लोगों में से लगभग एक को अवसाद के लक्षण होते हैं। यह विश्व में सबसे होने वाली चैथे नंबर की बीमारी है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि 2030 तक यह पहले नंबर पर आ जाएगी।
इसको विस्तार से जानें तो तनाव एक ऐसी स्थिति है जो कुछ भौतिक और मानसिक कारकों की वजह से होती है। जब हमारा जीवन हमारी सोची गई योजना के अनुसार नहीं होता तो वह हमें तनाव देता है। ऐसी परिस्थिति जीवन में अलग-अलग कारणों से होती है। जैसे- परिवार में सदस्यों के बीच आपस में अच्छा सामंजस न होना, आर्थिक परेशानी का होना, पढ़ाई के बारे में ज्यादा सोचना इत्यादि। इस प्रकार की वजहों के कारण हम सभी नेे कभी-न-कभी तनाव, चिंता, दुखी मन या स्ट्रेस का अनुभव किया है। हमारा मन इस स्थिति से उबरने की पूरी कोशिश करता है। पर कुछ लोग तनाव मुक्त इसलिए नहीं हो पाते, क्योंकि उन्हें पता नहीं होता कि वह तनाव ग्रस्त हैं।
अवसाद के प्रकार
1- मेजोटाइप डिप्रेशन- इस प्रकार में व्यक्ति दुखी महसूस करता है। अपने को कम ऊर्जावान और धीमा महसूस करता है। इसमें ध्यान और उत्साह की कमी हो जाती है।
2- अनथिक्रित डिप्रेशन- इस प्रकार की अवस्था में मनोदशा बदलती रहती है। कभी उत्साहित महसूस होता है, तो कभी उदासीन लगने लगता है। इस प्रकार में स्वार्थी भावनाएं उत्पन्न होती हैं।
3- आतिदीन अवसाद- इस प्रकार का अवसाद गंभीर होता है। क्योंकि यह लंबे समय तक बना रहता है। और मरीज की रोज की दिनचर्या पर भी प्रभाव पड़ता है। आसान कार्य करने में भी कठिनाई महसूस होती है। आगे बढ़ाने, कुछ करने की भावना खत्म सी होने लगती है।
4-पिरीआडिकल डिप्रेशन- इस प्रकार में व्यक्ति को सालों तक कठिन समय गुजारना पड़ता है। बीच-बीच में उसको ठीक महसूस होता है। इस प्रकार में मौसम बदलाव का असर पड़ता है। मौसम बदलने पर परेशानी बढ़ सकती है।
5-सामान्य डिप्रेशन- यह प्रकार सामान्य है और कभी-न-कभी हर किसी ने इसे महसूस किया होता है। इसमें चिंता और तनाव लंबे समय तक रहता है। उदास, निराशा और ऊर्जा की कमी होती है।
मनोविश्लेषकों के अनुसार प्राकृतिक तौर पर महिलाएं पुरुष की अपेक्षा डिप्रेशन की अधिक शिकार बनती हैं। इसके विपरीत पुरुष अक्सर अपनी डिप्रेशन की अवस्था को स्वीकार करने में संकोच करते हैं। एक अनुमान के अनुसार 10 पुरुषों में एक, जबकि 10 महिलाओं में हर पांच को अवसाद की आशंका रहती है।
अवसाद में अक्सर दिमाग के न्यूरोट्रांसमीटर की कमी के कारण लक्षण दिखाई देते हैं। न्यूरोट्रांसमिटर्स दिमाग में पाए जाने वाले रसायन होते हैं जो दिमाग और शरीर के विभिन्न हिस्सों में तारतम्यता स्थापित करते हैं। इसकी कमी से शरीर की संचार व्यवस्था में कमी आती है। यह न्यूरोट्रांसमीटर्स खुशी और आनंद की भावनाओं को प्रभावित करते हैं। अवसाद में इनकी कमी और उनके बीच असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। जिस कारण अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती है। कुछ कारण अनुवांशिक भी होते हैं। यदि परिवार में किसी को अवसाद है तो अगली पीढ़ी में अवसाद होने की आशंका बढ़ जाती है। पर इसमें कौन सा जीन शामिल है इसकी स्पष्टता अभी नहीं पता चली है।
कई रोग भी अवसाद का कारण बन जाते हैं जैसे अलजाइमर, पार्किन्सन एवं थाइराॅइड इत्यादि। जीवन की घटनाएँ, चिंताऐं आदि भी अवसाद को उत्पन्न कर सकती हैं। निरन्तर तनाव या संघर्ष, गम्भीर दुख भी इसका कारण बन सकता है। कुछ वातावरणिक कारक जैसे काफी लम्बे समय से चला आ रहा संघर्षपूर्ण परिवेश, सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग, प्राकृतिक आपदाएँ, सामाजिक अलगाव आदि भी अवासाद उत्पन्न कर सकते हैं।
जब डिप्रेशन महसूस हो तो क्या करना चाहिए?
1. यदि किसी को शुरूआत में ही अपने में अवसाद के लक्षण लगते है तो उस समय अपनी भावनाओं को और भावनाओं के पीछे के कारणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। किसी समस्या को अनदेखा करना उस समस्या से निजात पाना नहीं है। हिम्मत से काम लें और अपनी बिगड़ती भावनाओं का कारण जानने की कोशिश करें। सबसे पहली मदद आप खुद ही अपनी कर सकते हैं।
2. अपने को परिवार वालों से या मित्रों से अलग न करें। सबसे बातचीत चालू रखें और अगर आपके कोई ज्यादा करीब है तो उसे अपनी स्थिति के बारे में खुल कर बताएँ। बताने से मन हल्का तो होगा ही और कभी-कभी कोई जानकार कुछ ऐसी राय दे देते हैं जिसे हम देख या सोच नहीं पाते हैं। तो परिजनों और दोस्तों से बातचीत करना और अपनी भावनाओं को साझा करना मददगार हो सकता है।
3. व्यायाम पर ध्यान दें। अपने लिए शान्त समय निकालें। अपने से शान्त मन से बातचीत करें। योग, ध्यान, श्वसन क्रियाएँ आपके मन को शान्त करने और तनाव को कम करने में मददगार साबित होंगी।
4. अपनी रूचिं के काम करें। यदि आपकी किसी कार्य में रूचि है तो उसे नियमित रूप से करें और नहीं है तो कुछ रूचि को अपनाएँ और उसे करें। किसी कार्य में लगे रहने से दिमाग बेफिजूल सोचना बन्द करता है और अपनी इच्छा का कार्य करने से खुशी मिलती है। अपने पसन्द के गाने सुने।
5. ‘‘अपनी पुरानी बीती बातें‘‘ या ‘‘आने वाले कल‘‘ के बारे में सोच-सोच कर हम अपनी परेशानियों को और भी बढ़ा देते है इसलिए बेहतर होगा कि हम आज के बारे में ही सोचे और आज को ही बेहतर बनाने की कोशिश करें।
6. नियमित नींद ओर विश्राम का ख्याल रखे। अगर नींद पूरी न हो तो वह भी हमारे नर्वस सिस्टम में तनाव पैदा करती है जिस वजह से चिंडचिड़ापन आता है और हमारे स्वभाव और कार्य पर इसका प्रभाव पड़ता है और तनाव से रिश्ते भी खराब हो जाते है। जो फिर आगे अवसाद का कारण बन सकते हैं। इसलिए अपनी नींद को ठीक और पूरा रखें और उसको प्रभावित करने वाले कारणों को जाने और उसको ठीक करने की पूरी कोशिश करें।
7. अपने अवसाद के कारणों को ठीक करने के लिए जैसे चिंता, दुःख, नींद की कमी आदि के लिए बहुत से लोग नशीले पदार्थों का सहारा लेने लगते है जैसे ड्रग्स, शराब, सिगरेट आदि। ऐसा करने से हो सकता है कि कुछ समय तक के लिए उस तनाव से दूर रह सकते हैं लेकिन धीरे-धीरे आपको नशा करने की आदत बन जाती है जिससे आप मानसिक और शारिरिक रूप से कमजोर हो जाते है। इसलिए डिप्रेशन के समय नशीली चीजों से दूर ही रहना चाहिए।
8. यदि आप में अवसाद के लक्षण लम्बे समय तक बने रहें और दैनिक गतिविधियों को प्रभावित कर रहे हैं तो इस समस्या के लिए बेेहतर होगा कि मनोचिकित्सक की सलाह ली जाए।
हमने अभी जाना कि योग और व्यायाम अवसाद को कम करने में मददगार साबित होता हैं। यह स्वाभाविक रूप से मस्तिष्क में सेरोटोनिन के स्तर को बढाते हैं। योगासन हमारे मूड को बूस्ट करने के लिए ब्लड पंप करता है। यह ध्यान और सांस तकनीक के माध्यम से आराम की स्थिति में लाकर शान्त करता है। योग की कई मुद्राएँ हैं जो चिंता और अवसाद से निपटने में मदद कर सकती हैं।
सुखासन, अघो मुख स्वानासन, उध्र्व मुख स्वानासन, बालासन, उत्तानासन आदि आसनों को नियमित रूप से करने पर चिंता और अवसाद काफी हद तक दूर रहते हैं। व्यायाम और आसनों के बाद विश्राम भी जरूरी है। अपने को दर्द में रखकर कोई आसान नहीं करने हैं। ध्यान रहे योग और आसनों में आपको आनंद मिलना चाहिए। मन खुश और शांत होता महसूस हो। आसनों के बाद श्वसन करना भी आवश्यक है।