पंचायती राज मजबूत लोकतन्त्र का आधार
अजय
24 अप्रैल 2024 को देश में 73वां संविधान संशोधन लागू हुए 31 वर्ष पूरे हो जायेंगे। 73वें संविधान संशोधन के द्वारा भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय शासन व्यवस्था में जन भागीदारी के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ। इस अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में एक नया भाग-9 जोड़ा गया और इसमें अनुच्छेद 243 से 243-अ तक के प्रावधान शामिल किये गये। इस अधिनियम द्वारा संविधान में एक नई 11वीं अनुसूची भी शामिल की गई इसमें पंचायतों के 29 कार्यात्मक विषय शामिल किये गये।
24 अप्रैल 1993 के दिन इसे लागू किया गया था। तब से अब तक समय के पैमाने पर देखें तो लम्बा रास्ता तय किया जा चुका है। परन्तु धरातल पर बहुत कुछ होना बाकी है। इन 31 वर्षों में राज्यों ने अपने राज्य निर्वाचन आयोग बना लिए हैं। अधिकतर राज्यों में कुछ व्यवधानों के साथ पांच वर्षों में चुनाव भी हो रहे हैं। महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था भी लागू है। परन्तु अधिकतर राज्यों में ग्राम सभाएं, जिला व ब्लाॅक पंचायतें अभी भी अपनी वार्षिक विकास योजना बनाने का कौशल हासिल नहीं कर पायी हैं। जो पंचायती राज व्यवस्था का मूल आधार है। जहाँ योजनाएं बन भी रही है वहां राज्य व केन्द्र सरकार के विभाग उन प्रस्तावित योजनाओं के अनुसार धन मुहैया नहीं करवा रहे हैं। साथ ही कार्यों को अंजाम देने के लिए पंचायतों के पास कर्मचारियों का भारी टोटा है। ऐसा लगता है कि देश के कुछ राज्यों जैसे केरल इत्यादि को छोड़कर अन्य राज्यों की अफसरशाही को पंचायतों की मजबूती में जरा भी रुचि नहीं है और मजबूत पंचायती राज राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में शामिल नहीं है।
वर्तमान में देश के सभी राज्यों में विकास कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र संघ में तय, सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में संचालित हो रहे हैं। सतत् विकास लक्ष्यों में भूख व गरीबी को खत्म करना पहले दो लक्ष्य हैं। बार बार यह भी कहा जा रहा है कि सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए उससे सम्बन्धित कार्यक्रमों को पंचायतों की वार्षिक विकास योजना में शामिल किया जाना जरुरी है, ताकि धरातल पर उनका क्रियान्वयन हो सके। लेकिन जब पंचायतों की वार्षिक विकास योजना महज खानापूरी कर बनायीं जा रही हैं तो ऐसे में सतत विकास लक्ष्यों को कैसे हासिल किया जा सकेगा।
देश में मजबूत पंचायती राज ही मजबूत लोकतंत्र का आधार हो सकता है। मजबूत लोकतंत्र का सीधा सरल मतलब है कि लोगों को अपने मसलों पर निर्णय का अधिकार हो/उनकी निर्णय में भागीदारी हो। संविधान में निर्णयाधिकार को लेकर केन्द्र सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची पहले से थी। अब संविधान के 73वें संशोधन के द्वारा गाँव, ब्लाॅक, जिला पंचायतों के लिए भी 29 विषयों की सूची का प्राविधान किया गया। इस तरह पंचायतो को प्राविधानित विषयों पर निर्णय लेने का संवैंधानिक हक तो मिल गया। परन्तु जमीनी स्तर पर ऐसा प्रायः कुछ भी नहीं है।
टैक्स कलेक्शन से जो भी कुल आय केन्द्र सरकार को होती है उसमें जिला, ब्लाॅक पंचायत व ग्राम सभा का हिस्सा बढ़ना चाहिये। मजबूत लोकतंत्र के लिये जरुरी है कि 73वें संविधान संशोधन के तहत प्रदत्त विषयों पर गांव सभा को निर्णय का अधिकार है। साथ ही ब्लाॅक व जिला स्तर के मसलों पर क्रमशः ब्लाॅक व जिला पंचायतें निर्णय लेने की अधिकारी हैं। तभी सच्चे लोकतंत्र का अहसास जन-जन तक जाऐगा और पंचायतें स्वतंत्र, सक्षम और मजबूत हो सकेंगी।