मनीष रावत
यह कविता रत्नागिरी की वर्षा परिस्थितियों में, एक निर्धन परिवार के मुखिया के दर्द को बयान करने की कोशिश है, जो कोंकण की तेज बरसात में अपने घर को लेकर डरा हुआ है।
सोने से पहले, और उठने के बाद
सताती है, बस यही बात
क्या कभी सुधरेंगे, जीवन के यह हालत।
सोचकर लगता है, फिर से यह डर
आने वाले मानसून में क्या
बच पायेगा अपनी यादों का घर।
जब कोकण की तेज बारिश
बरसाएगी अपना कहर
साल भर की बचत, खर्च हो जाएगी घर की मरम्मत पर।
कब तक यूं ही चलता रहेगा
संकटों का यह जीवन चक्र।