शंकर दत्त
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में 13 जून को एक दुखद घटना घटी। यहाँ बिन्सर वन्यजीव अभ्यारण्य क्षेत्र के जंगल में भीषण आग लग गई, आग बुझाने का प्रयास करते हुए वन विभाग के चार कर्मियों की मौत हो गई। अधिकारियों के अनुसार, आग इतनी भयंकर थी कि कर्मचारी तुरंत ही आग की लपटों में घिर गए और गंभीर रूप से झुलस गए। उल्लेखनीय है कि इस साल इस घटना से पहले भी तीन अलग-अलग घटनाओं में फ्रंटलाइन वन कर्मचारी जंगल की आग में अपनी जान गंवा चुके हैं। जिससे जंगल की आग से मरने वाले कर्मियों की कुल संख्या दस हो गई है। इनमें से नौ मौतें अकेले अल्मोड़ा क्षेत्र में हुईं हैं।
राज्य के सहायक प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन अग्नि के नोडल अधिकारी निशांत वर्मा के अनुसार, उत्तराखंड में 1 नवंबर 2023 से 12 जून 2024 की शाम तक 1,213 वन अग्नि घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान 663 घटनाएं हुई थीं। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) ने इस वर्ष अप्रैल में वन विभाग को छोटी और बड़ी दोनों तरह की वन आग के लिए लगभग 7,000 अलर्ट भेजे, जो पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान प्राप्त 925 अलर्ट से काफी अधिक है।
यदि बारिकी से समझा जाय तो वनाग्नि के लिए पूरी तरह राज्य व्यवस्था जिम्मेदार है। जंगल की आग बुझाते हुए वन कर्मियों का जल कर मर जाना और हर साल इन घटनाओं का बढ़ना पूरे तंत्र की विफलता का सूचक हैं। कुछ कर्मचारियों/अधिकारियों को निलम्बित करना व मृतकों को मुआवजा भर दे देना न तो त्वरित समाधान है न ही लंबी अवधि के वन प्रबंधन के लिए कुशल रणनीति।
जंगलों मे लगातार आग लगने की बढ़ रही घटनाओं के बाद भी हमारे नीति नियंताओं और विषय जानकारों का दृष्टिकोण संकीर्ण ही है। जंगलों मे आग लगने की घटना को सम्पूर्ण पारिस्थितिकीय से अलग देखना कमजोर प्रबंधन का सूचक है। जंगलों को आग से बचाने के लिए हमे पूरे पारिस्थितिकी का समग्रात्मक दृष्टिकोण से प्रबंधन करना होगा। जिसके अंतर्गत वनों के वार्षिक चक्र का निर्धारण कर सभी कारकों जैसे मिट्टी, पानी, जैव-विविधता, छटाई, नियंत्रित आग जैसे पक्षों पर निरंतर कार्य करना होगा। मानव जनित आग लगने की घटनाओं के प्रबंधन हेतु वन पंचायत जैसे समुदाय आधारित संगठनों को मजबूत करने के लिए ईमानदार प्रयासों की जरुरत है।
अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई करने, आग लगाने के मामलों में केस दर्ज हो जाने, कुछ गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा देने या आपातकाल मे फायर ब्रिगेड या सीजन में वन मित्रों की तैनाती से हो सकता है हम कुछ समय के लिए समस्या को कम कर लें किन्तु दीर्घकालीन रणनीति के बगैर काम नहीं चलने वाला है। आग बुझाना अन्तिम विकल्प हो। प्रबंधन इस तरह हो कि हर साल आग लगने की घटनाए कम होती चली जाएं।