भूस्खलन-संवेदनशील उत्तराखंड

आसना, सल्ट (अल्मोड़ा)

मानसून सीजन शुरू हो गया है। अब वर्षा होने से जहाँ एक और गर्मी से राहत मिली है तो दूसरी और पहाड़ों में भूस्खलन की खबरें आने लगी हैं जबकि अभी मानसून सीजन की शुरुआत ही हुई है। मौसम विभाग की वेबसाइट के अनुसार उत्तराखंड में 1 जुलाई से आज 17 जुलाई तक 302 मीमी वर्षा हो चुकी है। राज्य में वर्षा की शुरुआत कहीं मूसलाधार वर्षा से हुई तो कहीं बदल फटने की ख़बरें भी आयी। जगह-जगह भूस्खलन होने से भारी मात्रा में मलवा सड़कों पर आ गया, इस वजह से कई जगह सड़क यातायात रूक गया। भारी वर्षा से शहरी क्षेत्रों में जलभराव की खबरें भी खूब आ रही है। कई जगह सड़क मार्गों में बहने वाले नालों में अत्यधिक बहाव की वजह से कई लोग बह गए व जान से हाथ धो बैठे हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में 2015 से अगस्त 2023 तक 3601 भूस्खलनों में 266 से अधिक लोग मारे गए और 178 घायल हुए। राज्य में जहाँ 2022 में 245 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी वही 2023 में 1173 भूस्खलन की सूचना मिली।

जलवायु परिवर्तन के कारण जल संकट, बाढ़ और भूस्खलन आपदाओं की घटनाओं में वृद्धि देखी जा सकती है। राज्य में नैनीताल, उत्तरकाशी व जोशीमठ जैसी अनेक ऐसी जगह है जहां मानवीय हस्तक्षेप और दबाव के कारण पहले ही गंभीर खतरा बना हुआ है, ऐसी बहुत सी नई जगहें भी बन रही हैं जहाँ चट्टानों के खिसकने की संभावनाएं बढ़ी हैं। एक बात और गौर करने की है कि ग्रीष्म काल में जिन क्षेत्रों में जंगलों में भारी आग लगी थी वहां पानी के साथ भारी मात्रा में मिट्टी, राख इत्यादि बह कर आ रही है और नुकसान कर रही है। ऐसा लगता है कि जिन क्षेत्रों में जंगलों में भारी आग लगी थी वहां जंगलों की पानी को सोखने की क्षमता कम हो गई है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा तैयार भारत का भूस्खलन मानचित्र या एटलस-2023, हिमालयी राज्य उत्तराखंड की डरावनी तस्वीर दिखा रहा है। इस एटलस में हिमालय से लेकर पश्चिमी घाट तक देश के 17 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों को भूस्खलन-संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल किया है। इनमें उत्तराखंड के दो जिले रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल को सबसे ऊपर रखा गया है। यह एटलस उपग्रह से लिए गए चित्रों पर आधारित है। इस एटलस से पता चलता है कि देश में रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, राजौरी, त्रिशूर, पुलवामा, पलक्कड़, मालाप्पुरम, दक्षिण सिक्किम, पूर्वी सिक्किम और कोझिकोड में भूस्खलन का खतरा सब से ज्यादा है। राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा यह एटलस 1988 से 2022 के बीच रिकॉर्ड किए गए 80,933 भूस्खलनों के आधार तैयार की गई है।

इस स्थिति के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सरकार को वर्षा जनित आपदाओं के प्रभावों के न्यूनीकरण हेतु शोध कार्यों को प्रोसाहित करने की जरूरत है इसके लिए सम्बंधित संस्थानों के लिए शोध कार्यों हेतु बजट को बढ़ने की आवश्यकता है साथ ही वर्षा जल के प्रबंधन हेतु दीर्घकालीन कार्ययोजना पर काम करने की जरूरत है।

1 thought on “भूस्खलन-संवेदनशील उत्तराखंड”

  1. Hardeep Singh Rawat

    After reading this article, I got a lot of information about landslides and this article should reach more and more people. So that the mistakes made by them who do such activities with nature (like forest fires, unnecessary cutting of trees, etc.) are suffered by the local people.

    Thanks 👍😊

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top