
कनक जोशी
( जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग )
बे मौसम बरसात होना यह किस्सा शायद हम सभी ने सुना होगा और सुना भी क्यों ना हो यह एक व्यंग्यात्मक रूप में लिये जाने वाले किस्सों में से एक है ।परंतु यह कौन जानता था कि यह व्यंगात्मक किस्सा एक दिन चिंतनीय हो जाएगा होना भी स्वाभाविक है क्योंकि आँकड़े दर्शाते हैं कि 19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फॉरनहाइट (अर्थात् लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी लगभग 8 इंच की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि यह समय जलवायु परिवर्तन (Climate change)की दिशा में गंभीरता से विचार करने का है।
बदलते मौसम अचानक सर्दी अचानक गर्मी न जाने बिना बादलों के बरसात यह सब होना जलवायु परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारण है। अब यह एक या दो दिन की बात तो है नहीं की बैठे-बैठे जलवायु परिवर्तन हो गया हो इसे होने में कई 100 साल लगे हैं। जिसके मुख्य कारण यदि हम खोजने बैठे हैं तो कोई और नहीं केवल हम पे जाएंगे और पे जा रहे हैं। प्रकृति ने मनुष्य को सुधारने के काफी अवसर दिए धीरे-धीरे बढ़ता तापमान इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। वह कहते हैं ना हमें मुफ्त की चीजों की कद्र नहीं होती ठीक उसी प्रकार यह बात सही साबित करी कोरोना ने जब भारी मात्रा में आक्सीजन सिलेंडरों की मांग बड़ी प्रकृति की शुद्ध हवा को हम सभी ने नकारा फिर हमें इसी के लिए पैसे देने पड़े। अभी तो यह काफी छोटी बात है न जाने भविष्य में और क्या-क्या हो?
आज जब बात बस से बाहर हो चली है तो सब इस पर बात कर रहे हैं। बात तो होगी ही ना क्योंकि यह मनुष्य जीवन को जो प्रभावित करने लगा है। समुद्र तट पर अचानक लाखों मछलियों का आना अचानक मौसम का परिवर्तन यही सब कुछ तो चल रहा है।
अब देश विदेश लोग बैठकर न जाने इस पर क्या-क्या नीतियां बना रहे हैं केवल कागज और कलम से लिखने पर जलवायु परिवर्तन ठीक नहीं होगा यदि ऐसा संभव होता तो शायद यह मंजर कभी नजर ही ना आता। अब सवाल यह उठता है कि क्या किया जाए जिसका उत्तर हम सभी लोग भली भांति जानते हैं।• वृक्षारोपण •प्लास्टिक का कम उपयोग यह कुछ मुख्य बिंदु है जिन पर कार्य करने की आवश्यकता है।
और आज समाज में किसके पास इतनी फुर्सत है कि वह एक पेड़ लगाए उसकी देखभाल करें चलो आदमी पेड़ तो लगा ले पर उसकी देखभाल करने का समय उसके पास कहां।
5 जून विश्व पर्यावरण दिवस के दिन देश विदेश के शायद 50% से अधिक लोग वृक्षारोपण करते हैं यह बात हम कह पा रहे हैं क्योंकि वह सभी सोशल मीडिया के द्वारा अपनी फोटो हम सभी के साथ साझा करते हैं।लेकिन उसके बाद क्या? उन वृक्षों का वजूद ही नहीं रहता शायद उनमें से केवल 10% वृक्ष ही जीवित रहते हो। विलासिता और दिखावे से परिपूर्ण समाज में लोगों को विचार करने के लिए समय नहीं है।शायद यह भी जलवायु परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारण है प्रत्येक व्यक्ति चाहता है उसके घर में एक कार एक स्कूटी एक बाइक इस से ज्यादा हो तो क्या बात है ।कोई भी सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना नहीं जानता यदि मनुष्य की आंख में विलासिता की पट्टी बध जाए तो वह जाने का भी कैसे हमारे ही हाथ में है की जलवायु परिवर्तन को बढ़ाना है या घटना है हम इस पर कैसे कार्य कैसे करना है। जब तक मनुष्य को आत्म अनुभव नहीं होगा तो कुछ नहीं हो सकता देखते हैं की और कब होगा और शायद जो तभी होगा जब सब कुछ हाथ से निकल जाएगा कहते हैं ना अब पछताए क्या हो जब चिड़िया चुग गई खेत ।
ग्राम – बरसीमी
जिला – अल्मोड़ा