डा० वन्दना, बैगलुरु
डिमेंशिया लक्षणों का एक समूह है, और ये सब लक्षण मस्तिष्क की क्षमताओं से सम्बधित हैं। इसे मनोभ्रंश के नाम से भी जाना जाता है। जब हमारा प्रमस्तिष्कीय वल्कुट यानि बमतमइतंस क्षीण होना शुरू होता है तो उसमें अपरिवर्त्य बदलाव होने लगते हैं, उस वजह से उसके कार्य करने की क्षमता में इसका प्रभाव पड़ता है और डिमेंशिया शुरू होता है। यह काफी वर्षों का परिणाम होता है। यह एक दम से होने वाली परेशानी नहीं है। आयु, आनुवांशिक विरासत और परिस्थितियों को शामिल कर संसर्ग कारक इसके लिए जिम्मेदार हैं।
नाड़ी सम्बन्धी डिमेंशिया दिमाग के लिए आपूर्ति करने वाली रक्त नसों को क्षति पहुंचने से होता है। धुम्रपान करने या उच्च रक्तचाप वाले लोगों में, रक्त में चर्बी की बहुत मात्रा होने वाले लोगों में या मधुमेह रोग से ग्रस्त लोगों में नाड़ी संबंधी डिमेंशिया विकसित होने का खतरा होता है।
डिमेंशिया में व्यक्ति की संज्ञानात्मक क्षमता अर्थात सोच, तर्क और याद संबंधी क्षमता में गिरावट होती है। याद्दाशत की समस्या इसका एकमात्र प्रमुख लक्षण नहीं है, इसके अलावा भी इसके अनेक गम्भीर और चिन्ताजनक लक्षण होते हैं जिसका असर पीड़ित के जीवन के हर पहलू पर होता है।
कई बार व्यक्ति को अपने दैनिक कार्य सम्पन्न करने में भी दिक्कत होता है और यह परेशानियाँ उम्र के साथ बढ़ती जाती है। यह बीमारी 65 वर्ष से अधिक उम्र के दस में से एक को प्रभावित करती है। यह 45 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले लोगो को भी प्रभावित कर सकती है।
लक्षण- मनोभ्रंश के लक्षण कई रोगों के कारण पैदा हो सकते हैं। क्योंकि यह मस्तिष्क को हानि करते हैं और हम अपने सभी कार्यों के लिए मस्तिष्क पर निर्भर है। साल दर साल इस रोग से पीड़ित व्यक्ति की स्थिति खराब होती चली जाती है और बाद में साधारण कार्य करने में भी दिक्कत होने लगती है जैसे चल पाना, बात करना, खाना खा लेना, निगलना, चबाना आदि। आरम्भिक लक्षण में सबसे चर्चित है याद्दाशत की समस्या। डिमेंशिया में देखी जाने वाली याद्दाशत की समस्या सामान्य बुढापे की भूलने की समस्याओं से अलग है। डिमेंशिया में समस्या खास तौर पर अल्पकालीन मेमोरी में होती है- यानि की हालिया घटनाएँ या हाल में सीखी हुई चीजे याद रखने में दिक्कत,अन्य लक्षण होते है। सोचने में कठिनाई होना छोटी-छोटी समस्याओं को भी न सुलझा पाना जैसे बोलते वक्त सही शब्द न – ढूंढ पाना। समय और स्थान का सही बोध न होना, परिचित जगहों में खो जाना, दिन है या रात यह न जान पाना भटक जाना । किसी वस्तु या चित्र को देखकर न जान पाना कि वह क्या है। नम्बर जोड़ने और घटाने में दिक्कत । वस्तुओं को अजीब तरह से इधर- उधर रख देना, जो उसकी जगह नहीं है वहाँ रख देना, जैसे फोन या घड़ी को फ्रिज में रख आना।अनुचित अटपटे निर्णय लेना जैसे तपती धूप में स्वैटर पहन लेना।
डिमेंशिया से ग्रसित लोग अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाते। उनके मूड और व्यवहार में बदलाव आने लगता है। दृष्टि सम्बन्धित समस्याएँ- छवियाँ पहचानने में दिक्कत होना, दूरी और गहराई का अनुमान न लगा पाना, पढ़ने मे दिक्कत होना। यह जरूरी नहीं कि सारे लक्षण डिमेंशिया से ग्रसित सभी व्यक्तियों में पाए जाए। हर व्यक्ति में सारे लक्षण नहीं पाए जाते है। लक्षण मस्तिष्क की क्षति के कारण होते है। तो इससे हम जान सकते हैं कि किस व्यक्ति में कौन से लक्षण आएगें और कितने गंभीर होंगे यह सब निर्भर होता है कि व्यक्ति के मस्तिष्क में कहाँ और कितनी क्षति है। जैसे कि अल्जाइमर के मरीज । डिमेंशिया में अक्सर शुरू में याददाशत की समस्या होती है पर अन्य डिमेंशिया के प्रकार में आरंभिक लक्षण में फर्क हो सकता है जैसे कि भूलने की समस्या से पहले व्यवहार संबंधी समस्याऐं आ सकती हैं। बोल चालमें दिक्कत हो सकती है आदि।
डिमेंशिया और बुढ़ापे में याददाश्त के लक्षणों में अन्तर ।
डिमेंशिया में और सामान्य बुढ़ापे में भूलने की बीमारी में अन्तर है। इन दोनों में अन्तर न कर पाना आम समस्या है। क्योंकि डिमेंशिया के शुरूआती लक्षण सामान्य बुढ़ापे की समस्याओं से मिलते जुलते है। ज्यादातर लक्षण धीरे-धीरे साल दर साल ही बढ़ते है तो ज्यादातर केस में लक्षण इतनी धीमी गति से बढ़ते है कि इनको बुढ़ापे की सामान्य समस्याओं से कनफ्यूज कर लिया जाता है। पर डिमेंशिया उम्र बढ़ने का स्वाभाविक अंग नहीं है। डिमेंशिया के बारे में अच्छे से जानकारी हो तो इसके लक्षणों को जान पाना आसान हो जाता है। वैसे चाहे कोई भी दिक्कत हो जो सामान्य व्यवहार से अलग लगे और व्यक्ति की रोजमर्रा के कार्यों को प्रभावित कर रही हो तब डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक है।
हमने जाना कि डिमेंशिया क्या है, उसके लक्षण क्या-क्या होते हैं, आम लक्षण जो ज्यादातर लोग जानते हैं, उसके अलावा भी क्या लक्षण होते हैं जिसकी सहायता से डिमेंशिया को समय रहते जाना जा सके और उसके लिए सही कदम उठाये जा सकें। डिमेंशिया और बुढ़ापे में याददाश्त की परेशानी आने वाली समस्या में अन्तर है आदि।
अब हम इसके कारण को समझेंगे
डिमेंशिया के कारण
हमारे मस्तिष्क के कई भाग होते हैं। हर एक भाग का अपना-अपना काम होता है। सब भाग आपस में मिलकर हमारे शरीर के फंक्शन को सुचारू रूप से चलाते हैं। जैसे कि हमने पिछले भाग से जाना था के जब मस्तिष्क कोशिकांए क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो डिमेंशिया हो सकता है। इसके कारण मस्तिष्क की एक दूसरे के साथ संवाद करने की क्षमता पर असर पड़ता है। जब किसी विशेष क्षेत्र की कोशिकाएं प्रभावित हो जाती हैं या क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो वह क्षेत्र अपना कार्य सही तरीके से नहीं कर पाता। ये नुकसान सिर में चोट लगने, स्ट्रोक, ब्रेन ट्यूमर या एचआईवी संक्रमण की वजह से भी हो सकता है।मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचने पर डिमेंशिया हो सकता है। इस नुकसान से दिमाग में मौजूद कोशिकाओं के बीच में संपर्क की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। इसी तरह से इससे ग्रसित व्यक्ति की सोच, बर्ताव और भावनाओं पर असर दिखता है।
नाड़ी संबंधी डिमेंशिया दिमाग के लिए आपूर्ति करने वाली रक्त नसों को क्षति पहुँचने से होता है। धूम्रपान करने या उच्च रक्तचाप वाले लोगों में, रक्त में चर्बी की बहुत मात्रा होने वाले लोगों में या मधुमेह रोग से ग्रस्त लोगों में डिमेंशिया का खतरा ज्यादा होता है। इसको हमने पिछले भाग में भी जाना था, क्योंकि आजकल यह कुछ बीमारियां बहुत आम हो गई हैं। ब्लड प्रेशर, मधुमेह, थाइराइड आदि बीमारियां ज्यादातर हमारे सही तरह से जीवन यापन न करने की वजह से होती हैं। भले ही हम इसको अपने पूर्वजों से अपने जींस में भी लाए हों। पर अच्छी जीवन शैली के साथ हम इन बीमारियों को अपने जीवन मेंआने से रोक सकते हैं।
डिमेंशिया के प्रकार
डिमेंशिया के लक्षण और इसका बढ़ना इस बात पर निर्भर करता है कि किस व्यक्ति -को कौन से प्रकार का डिमेंशिया है, अलग- अलग कारण से डिमेंशिया होता है, तो प्रकार भी बदल जाता है। कुछ डिमेंशिया का निदान संभव है और कुछ अभी तक लाइलाज हैं। जो अभी प्रकार आगे देखेंगे उनका निदान संभव है।
1. अल्जाइमर रोग- यह डिमेंशिया का सबसे आम कारण माना जाता है। इस रोग के परिणामस्वरूप असामान्य प्रोटिन द्वारा मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है। इस कारण नसों का आकार बढ़ जाता है। जबकि दिमाग का आकार घटता चला जाता है। इस रोग में दिन- प्रतिदिन की स्मृति के साथ समस्याएं होती हैं। उदाहरण के रूप में शब्दों को खोजने में कठिनाई, समस्याओं को हल करना, चीजों को तीन आयामों में समझना आदि शामिल हैं।
2- लेवी बॉडीज- यह डिमेंशिया का ही दूसरा रूप है जो कोर्टेक्स में प्रोटीन एकत्र होने के कारण होता है। इस डिमेंशिया के कारण याददाश्त में कमी, भ्रम होने जैसी शिकायतें रोगी के लक्षणों में दिखाई देती हैं। इसके अलावा सोने में समस्या, वहम, शरीर में संतुलन न रख पाना और बाथरूम जाने में समस्या आदि है।
3- पार्किंसंस रोग- ये बीमारी असल में न्यूरोडीजेनेरेटिव होती है। ऐसी अवस्था जिसमें तंत्रिका तंत्र को क्षति पहुँचती है, यह ऐसी अवस्था है जिसमें तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुँचता है। और इसी नुकसान से बाद में डिमेंशिया होता है। बाद में यह अल्जाइमर का रूप भी ले सकती है। इसमें शरीर का कोर्डिनेंश बिगड़ जाता है, जिस वजह से गाड़ी चलाने में या कोई भी कार्य जिसमें कोर्डिनेट मुवमेंट की जरूरत होती हो वह नहीं कर पाता। छोटे-छोटे फैसले कर पाना भी बहुत मुश्किल होता है।
4- मिश्रित डिमेंशिया – इसका मतलब यह है कि व्यक्ति को एक ही समय में अल्जाइमर और बैस्कुलर डिमेंशिया दोनों हो सकता है। इसमें अन्य कई प्रकार के डिमेंशिया होने की भी संभावना बनी रहती है।
5- फ्रंटोटेमपोरल डिमेंशिया- इसमें परेशान मरीज की पर्सनैलिटी और बातचीत के साथ बर्ताव में भी बदलाव आ जाता है, उसे अपनी भाषा समझने और बोलने में समस्या होने लगती है। ये बीमारी आमतौर पर कुछ दूसरी बीमारियों का परिणाम होती हैं।
डिमेंशिया का इलाज- डिमेंशिया का इलाज अंतर्निहित कारण का इलाज करने के बारे में है। ये कारण पोषण, हार्मोनल, टयूमर की उपस्थिति और नशीली दवाओं से संबंधित मनोभ्रम हो सकते हैं। ज्यादातर मामलों में ये कारण प्रतिवर्ती हैं।
हमने डिमेंशिया के कारण और प्रकार को विस्तार से जाना। अब हम इसके इलाज के बारे में जानेंगे और कुछ अन्य तथ्यों को भी देखेंगे। यदि आप अपने बारे में या अपने किसी जानने वाले के बारे में चिंतित हैं, तो आपको क्या कदम उठाने चाहिए ? यह आवश्यक है कि सीधे और बिना बात को पूरा परखे किसी निष्कर्ष पर न पहुँचें। बार-बार भूलने का अर्थ यह नहीं है कि आपको या आपके किसी जानने वाले को डिमेंशिया ही हो गया है। इसे अलावा भी कई उपचारयोग हालात जैसे कि संदूषण, दवाईयों के बुरे प्रभाव और विषाद ऐसी समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं।
किसी निष्कर्ष से पहले किसी चिकित्सक से मिलें और अपनी पूरी यानि मानसिक, शारिरिक और सामाजिक जाँच करवाएं। अपनी समस्याओं की एक सूची बनांए ताकि आप चिकित्सक को कुछ बताना न भूलें और निरीक्षण के लिए अकेले न जाएं किसी को साथ ले जाएं। उसको साथ ले जाना ज्यादा लाभादायक होगा जो आपकी समस्या से अवगत हो। ऐसा कोई भी एकमात्र निश्चित परीक्षण नहीं है जो यह दर्शाये कि कोई मनोभ्रंश यानि डिमेशिया से ग्रसित है। डिमेंशिया का निदान केवल लक्षणों के अन्य संभव कारणों को अस्वीकार करने के द्वारा ही किया जा सकता है। इसलिए एक सम्पूर्ण चिकित्सा जांच आवश्यक है। हांलाकि मनोभ्रंश रोग के अधिकांश कारणों का कोई इलाज नहीं है, परंतु थोड़ी अवधि के लिए कुछ लक्षणों को कम करने हेतु दवाई उपलब्ध हैं।विकारों का प्रबंधन जैसे अल्जाइमर रोग इसके अंतर्निहित कारणों के बजाय देखभाल और उपचार के लक्षणों पर ध्यान केंद्रित करता है। इसलिए कुछ दवाओं द्वारा अल्जाइमर रोग के लक्षणों को कम किया जा सकता है। डिमेंशिया आमतोर पर सेरेब्रल कौरटैक्स में गड़बड़ी के कारण होता है, जो मस्तिष्क का एक भाग है। यह विचार करने, निर्णय लेने और व्यक्तिव को कायम रखने का भी काम करता है। जब इन हिस्सों में मस्तिष्क कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं तो यह संज्ञानात्मक दोष का कारण बन जाता है। जो डिमेंशिया की विशेषता है। यदि मस्तिष्क में कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं और इसको रोका न जा सके तो इस वजह से डिजनरेटिव डिमेंशिया हो सकता है जिसका इलाज नहीं ज्ञात हो पाया है।
रोगी के साथ सामान्य बर्ताव
इसके इलाज के लिए यह भाग अतिआवश्यक है। बड़े ध्यान से रोगी के साथ बर्ताव करना है। डिमेंशिया के मरीज के आसपास के व्यक्तियों को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।जैसे- 1 – ऐसे प्रश्न न पूछिये जिसका उत्तर उन्हें देना पड़े। 2 – अगर वे एक ही बात बार-बार पूछें तो बेस्त्र न हों। 3 – उनका आदर करें, ध्यान रखें और उनके साथ प्रेम का बर्ताव करें। 4 – मुस्कुराएं और बहस न करें।
सावधानी
रोगी को घर से अकेले निकलने न दें, दरवाजे पर घंटी लगाएं ताकि उसके खुलने पर आपको जानकारी रहे। रोगी के पास नाम और पते वाला कुछ पहचान पत्र हो जैसे माला, ब्रेसलेट इत्यादि। शौचालय संबंधी सुझाव अगर रोगी को शौचालयजाने में दिक्कत हो रही है तो, शौचालय में कुछ ऐसा चिन्ह या फोटो लगाएं जिससे वह पहचान जाएं कि यह शौचालय है। उन्हें हर दो-तीन घंटे में शौचालय जाने के लिए प्रोत्साहित करें। उन्हें आरामदायक वस्त्र पहनाएं, जिसे रोगी को खोलने में दिक्कत न हो। कैफीन की मात्रा उन्हें कम दे जिसकी वजह से शौच अधिक जाना पड़ता है।
खाने के बारे में सुझाव –
1 – खाना शांत जगह पर खिलाएं। 2 – एक – समय पर एक तरीके का खाना दें। 3 – जो उंगलियों से खाया जा सके ऐसा खाना दें। 4 – अगर रोगी को गुस्सा आ जाए तो उसके साथ खाना खिलाने में जबरदस्ती न करें। थोड़ी देर बाद फिर से कोशिश करें।
सोने के बारे में सुझाव – अगर रोगी को सोने में दिक्कत हो रही है तो उसको अपने – शरीर को थकाने की ओ प्रेरित करें, जैसे डान्स, योग, कोई भी कार्य आदि। रोगी को उसके शौक की चीजों को करने के लिए प्रोत्साहित करें।
बातचीत संबंधी सुझाव- अगर बोलने, सुनने में और समझने में दिक्कत हो रही है तो, 1 – छोटे और सरल वाक्यों का प्रयोग करें। 2 – व्यक्ति को जवाब देने के लिए एक मिनट दें। 3 – रोगी से जोर से न बोलें । 4 – उन्हें आपसे बात करने के लिए प्रोत्साहित करें।
मरीज की बेचैनी शांत करने संबंधी सुझाव- जब व्यक्ति बेचैन या उत्तेजित हो तो, 1 – शांत और कोमल आवाज में बोलें। 2 – उनकी पसंद का संगीत बजाएं या जानी पहचानी फोटो देखें, पुरानी यादों को ताजा करें, विडिओं देखें। 3- बेचैनी का कारण जानने की कोशिश करें। 4 –रोगी को सैर पर ले जाएं, हरियाली दिखाएं कोई उनके मन का काम दें।
अगर व्यक्ति आप पर आरोप लगाये- रोगी का किसी पर आरोप लगाना भी एक लक्षण में आता है, यह आम लक्षण है। रोगी किसी पर चोरी, चोट लगाने जैसे आरोप लागा सकता है, तो ऐसे में अचंभित न हों, ऐसे में 1 – रोगी से बहस न करें। 2 – अगर चोरी का आरोप है तो उनकी कोई वस्तु को ढूँढने में उनकी मदद करें। 3 – उनको अपने प्रेम का और साथ का भरोसा कराएं। 4 – मरीज की देखभाल में परिवार के अन्य सदस्यों की मदद लें।
डिमेंशिया वाले रोगी की देखभाल करना आसान नहीं है। इसके लिए तपस्या, समर्पण और धैर्य चाहिए। यह परिवार के छुपे हुए गुणों और निपुणताओं को खोजने और बढ़ाने का मौका देता है।
आइए अब जानते हैं कुछ होम्योपैथिक उपचार के बारे में। वैसे होत्योपेथिक दवा किसी भी व्यक्ति की पर्सनालिटि को जानकर दी जाती हैं। पर कुछ दवाएं जो इस बीमारी में इस्तेमाल करी गई हैं और जिनके परिणाम देखे गए हैं उनको देखते हैं। मगर इनमें से कौन सी दवा आपको सूट करेगी यह चिकित्सक ही बता सकता है, तो अपने आप से कोई दवा न लें। कुछ दवाएं जानते हैं उनके लक्षणों के साथ जो डिमेंशिया के मामलों में उपयोग की जाती हैं।
1 – बेलाडोना – जिन लोगों को लिफ्ट में जाने पर चक्कर, उल्टी या सिरदर्द होता है, उनके लिए ये दवा सबसे ज्यादा लाभकारी है, इसका तंत्रिका तंत्र के हर हिस्से पर चिकित्सकीय प्रभाव पड़ता है। ये दवा उन- लोगों के लिए फयदेमंद रहती है जो बहुत – ज्यादा उत्साहित रहते हैं।
2 – एनाकार्डियम ओरिएंटेल – शारिरिक और मानसिक शक्ति की कमी के कारण – अचानक याददाश्त में कमी आने के कारण रोगी को अपना नाम, आस-पास के लोगों का नाम और जो कुछ उसने देखा वह भूल जाता है। अनुपस्थित दिमाग वाला, खुद पर या दूसरों पर विश्वास की कमी, वृद्ध, मनोभ्रंश विशेष रूप से अल्जाइमर रोग में, छात्रों को परीक्षा का डर, अधिक अध्ययन के बाद घबराहट भरी थकावट। ये दवा उन लोगों के लिए फयदेमंद रहती है।
3 – अंवरा ग्रेसिया- याददाश्त कमजोर है, समझ धीमी है। वृद्धावस्था का मनोभ्रंश, पढ़ा हुआ समझ नहीं आता और गणना करने में परेशानी होती है। अत्यधिक शर्मीला, डरपोक, आसानी से शरमा जाता है। लोगों से डर लगता है और अकेले रहने – की इच्छा होती है, संगीत रोने और कांपने का कारण बनता है। ये दवा उन लोगों के लिए फयदेमंद रहती है।
4 – कैनाबिस इंडिका- बहुत गुमसुम, भुलक्कड़, एक वाक्य भी पूरा नहीं कर पाता। एक वाक्य शुरू होता है और उसे समाप्त नहीं कर पाता। वह बातचीत के बीच में शब्द भूल जाता है, और उसे याद नहीं रहता कि वह क्या कहने वाला है। विचारों में खोना, समय बहुत लंबा लगता है। ये दवा उन लोगों के लिए फयदेमंद रहती है।
ऐसी और भी दवाए हैं जो इस बीमारी में इस्तेमाल होती हैं पर किसी होम्योपैथिक डाक्टर के सलाह के बिना अपने से दवा बिल्कुल न लें, यह हानिकारक हो सकता है ।