शंकर दत्त
आजकल शुगर की बीमारी आम हो गई है, और इसके इलाज के लिए बहुत अनुसंधान भी हो रहे है। विषय विशेषज्ञों का मानना है कि खान-पान का असंतुलन शुगर की बीमारी की एक बड़ी वजह है। इसलिए लोग तरह-तरह के डाइट प्लान शुगर को संतुलित रखने के लिए बताते हैं। खाने को लेकर मेडिकल अनुसंधान में एक सिद्धांत निकल कर आया है जो पूरी तरह वैज्ञानिक शोधों पर आधारित है। इस अनुसंधान में पाया गया है कि अगर हम अपने रक्त में ग्लाइसेमिक इंडेक्स और ग्लाइसेमिक लोड को कम रखें तो हम शुगर को संतुलित रख सकते है। क्या होता है ग्लाइसेमिक इंडेक्स और ग्लाइसेमिक लोड ? हम यहाँ चर्चा करेंगे।
अगर हम खाने के जैव रसायन का बारीकी से विश्लेषण कर उसके पोषक तत्वों को समझ लें तो हमारे लिए ये चयन करना बहुत आसान हो जायेगा की डायबिटीज में हमें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। मुख्य रूप से हमारा पोषण दो तरह के पोषक तत्व से बना होता है.
1. बृहत पोषक तत्व Macro nu- trients, प्रोटीन, वसा और – कार्बोहैड्रेड्स
2. सूक्षम पोषक तत्व Macro nu- trients, विटामिन्स, मिनरल्स, एन्जाइम्स औरवनस्पति रसायन
प्रोटीन, वसा और कुछ मिनरल्स हमारेशरीर का ढांचा बनाते हैं, और सूक्ष्म तत्व जैसे विटामिन्स, मिनरल्स, एन्जाइम्स, और वनस्पति रसायन शरीर के संचालन और क्रियाविधि हेतु आवशयक सहयोग देते हैं। इसको हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं। जैसे हमारी हड्डियां प्रोटीन की बनी होती हैं किन्तु बहुत लचीली होती हैं। कैल्सियम जो की एक मिनरल है, हड्डी से चिपक कर उसे ठोस बनाता है और दृढ़ता देता है। लचीले प्रोटीन से बनी हड्डी पर केल्सियम को ले जाने का कार्य सूक्षम पोषक तत्व विटामिन डी का है। इस प्रक्रिया को चिकित्सकिय जगत मे हडियों का केल्सियमीकरण या calcification of the bone कहते हैं। हम इसको ऐसे भी समझ सकते है कि हमारे घरो में बिजली से चलने वाले कई उपकरण होते है, किन्तु इनको चलाने के लिए एक छोटा सा स्विच होता है, जिनके बिना ये चल नहीं सकते। तो उपकरण हमारे शरीर के तंत्र है और स्विच सूक्षम पोषक तत्व ।
अब प्रश्न आता है की कार्बोहाइड्रेड्स क्या करते हैं? सरल कार्बोहैड्रेट्स का मुख्य कार्य शरीर को ऊर्जा देना है जबकि कुछ जटिल कार्बोहाइड्रेड्स (फाइबर) ऐसे हैं जिन्हें एंजाइम नहीं तोड़ पाते। हमारा शरीर कार्बोहैड्रेड्स का संचय नहीं कर सकता। सिर्फ पौधे ही कार्बोहैड्रेड्स को संचय या स्टोर कर सकते हैं। जरूरत से अधिक सरल कार्बोहाइड्रेड्स उपयोग किये जाने पर हमारा शरीर पहले चरण में इसे ग्लाइकोजन केरूप से स्टोर कर लेता है फिर ये ग्लाइकोजन वसा के रूप में शरीर में जमा होने लगता है। जरूरत होने पर हमारा लिवर फिर से ग्लाइकोजन को ग्लूकोस में बदल कर शरीर में ऊर्जा के लिए उपलब्ध कराता है।
हमने देखा कि कार्बोहाइड्रेड्स शरीर को ऊर्जा देते हे। मतलब जैसे बिजली के उपकरणों को चलाने के लिए विधुत का होना जरूरी हे उसी तरह शरीर के संचालन हेतु कार्बोहाइड्रेड्स जरूरी हैं। क्योंकि हम यहाँ पर डायबिटीज की बात कर रहे हैं और यह चिकित्सकीय रूप से सिद्ध है की डायबिटीज का कारण कार्बोहाइड्रेड्स हैं इसलिए यहाँ पर कार्बोहाइड्रेड्स और इसका डायबिटीज से सम्बन्ध को बारीकी से समझना होगा।
मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेड्स तीन सरल अणुओ कार्बन, हइड्रोजन, और ऑक्सीजन के बने होते हैं। ये तीन तत्व, तीन आधारभूत कार्बोहाइड्रेड्स फ्रुक्टोज, ग्लूकोस और ग्लेक्टोस बनाते है ये तीनो कार्बोहिड्रेस 6 कार्बन, 12 हाइड्रोजन, और 6 ऑक्सीजन तत्वों से मिलकर बनते है इनका रासायनिक सूत्र C6H12O6 होता है। अन्य सभी कार्बोहाइड्रेड्स इन्हीं तीन आधारभूत कार्बोहाइड्रेड्स से मिलकर बनते हैं। इसलिए हम कोई भी कार्बोहाइड्रेड्स खाएं वह पाचन क्रिया के दौरान ऐन्जायमों द्वारा इन्ही तीन आधारभूत कार्बोहाइड्रेड्स फ्रुक्टोज, ग्लूकोस या ग्लेक्टोस में तोड़ दिए जाते हैं। शरीर में इन आधारभूत कार्बोहाइड्रेड्स काव्यवहार अलग-अलग होता है। ये तीन सरल कार्बोहाइड्रेड्स मिलकर बहुत जटिल कार्बोहाइड्रेड्स तक बनाते हैं। इनको मुख्य रूप से चार भागों में बांटा गया है।
1. मोनोसैक्राइड्स (फ्रुक्टोज, ग्लूकोस या ग्लेक्टोस कोई भी एक अणु) उदाहरण- ग्लूकोस
2. डाई सैक्राइड्स (कोई भी दो मोनोसैक्राइड्स ) उदाहरण- (ग्लूकोस, फ्रुक्टोसे- सुक्रोस या चीनी) या (ग्लूकोस, ग्लेक्टोस = लेक्टोज या दूध)
3. ओलिगो सैक्राइड्स (तीन से दस मोनोसैक्राइड्स के अणु) उदाहरण- प्यास, होल ग्रेन
4. पॉली सैक्राइड्स (दस से अधिक मोनोसैक्राइड्स के अणु) उदाहरण- स्टार्च, गेहू का चोकर
मोटे तौर पर हमने कार्बोहैड्रेड्स को म समझा। शरीर में इसके प्रभाव को जानने के लिए हमें इसका शरीर में व्यवहार को समझना होगा। हम पहले भी चर्चा कर चुके है की हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेड्स का संचय नहीं कर सकता तो देखते हैं इसका शरीर न में क्या होता है।
ऐन्जायमों द्वारा सरल कार्बोहाइड्रेड्स में तोड़ देने के बाद ग्लूकोस तुरंत अवशोषण होकर रक्त में चला जाता है। जब रक्त में ग्लूकोस की मात्रा बढ़ती है, इन्सुलिन ग्लूकोस को कोशिकाओं के अंदर ले जाता है और वहां कोशिका ग्लूकोस को ऊर्जा में परिवर्तित कर शरीर के कार्यविधि में प्रयोग करती है। फ्रुक्टोसे हमें फ्लों से मिलता है। ये पाचन क्रिया के दौरान रक्त में नहीं लीवर में चला जाता है, लीवर इसे गलाईकोजन में परिवर्तित कर स्टोर कर लेता है। जैसे ही रक्त में ग्लूकोस की मात्रा कम होती है हमारा लीवर गलाईकोजन को ग्लूकोस में परिवर्तित्त कर रक्त में भेज देता है। गेलेक्टोसे हमें दूध से मिलता है ये सरल कार्बोहाइड्रेड्स भी लीवर में संचित होकर ग्लूकोस बनाता है। अब ये बात सिद्ध है कि पाचन के दौरन कार्बोहाइड्रेड्स ग्लूकोस -के रूप में हमारे खून में आएगा, और कुछ जटिल कार्बोहैड्रेड्स जेसे फाइबर बिना ग्लूकोस में परिवर्तित हुवे शरिर से बाहर निकल जाते हैं। पाचन के दौरान जो कार्बोहाइड्रेड्स ग्लूकोस के रूप में हमारे रक्त में आएगा इसे हम ग्लाइसेमिक कार्बोहैड्रेड्स कहते हैं, और ये ब्लड ग्लूकोस का स्तर बढ़ा देते हैं। – कुछ जटिल कार्बोहाइड्रेड्स जैसे फाइबर बिना ग्लूकोस मे परिवर्तित हुए शरीर से बाहर निकल जाते हैं और ब्लड ग्लूकोस का स्तर नहीं बढ़ाते। इसे हम नॉन ग्लाइसेमिक कार्बोहाइड्रेड्स कहते हैं। अब इससे यह पता लग गया है कि ग्लाइसेमिक । कार्बोहाइड्रेड्स ब्लड ग्लूकोस का स्तर बढ़ा देते हैं और नॉन ग्लाइसेमिक कार्बोहाइड्रेड्स (फाइबर) ब्लड ग्लूकोस का स्तर नहीं बढ़ाते ।
ग्लाइसेमिक कार्बोहाईड्रेट्स को और बारीकी से समझने के लिए एक केनेडियन प्रोफेसर डेविड जेंकिन्स ने काम किया। उन्होंने भोजन को उसके ब्लड ग्लूकोस बढ़ने की क्षमता के आधार पर ग्लाइसेमिक इंडेक्स की अवधारणा दी। ग्लाइसेमिक इंडेक्स से ये पता चलता है कि कार्बोहाईड्रेट्स किस गति से पाचन के बाद रक्त में जायेगा। जैसे ग्लूकोस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 100 है इसका मतलब ग्लूकोस 100 की गति से रक्त में चला जायेगा। गेहूँ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 70 है तो यह 70 की गति से रक्त में जायेगा। घी का का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ० है तो ये रक्त में ग्लूकोस नहीं बढ़ाएगा।. मतलब जिस खाने का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम है वो डायबिटीक के डाइट के लिए ठीक है। जिसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स ज्यादा है वो खाना डायबिटीज में ठीक नहीं है। हर खाने का ग्लाइसेमिक इंडेक्स अलग है और निश्चित है। जो खाना जितनी धीरे- धीरे ग्लूकोस निष्कासित कर रक्त में जायेगा वह डायबिटीक के लिए उतना ही अच्छा होगा। इसलिए ऐसा माना जाता है की 20 से 25 ग्लाइसेमिक इंडेक्स का खानाडायबिटीज में ठीक रहता है।
0 से 55 कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स
55 से 70 मध्यम ग्लाइसेमिक इंडेक्स 70 से ऊपर उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स अब हमें यह तो पता लग गया की हमारे शरीर में किस खाने से शुगर किस गति से बढ़ेगा। अब यह जानते हैं कि कितना बढ़ेगा। इसके लिए हमें ग्लाइसेमिक लोड को समझना होगा। क्या आपने कभी सोचा कि एक निश्चित समय में हमारे खून में लगभग कितना ग्लूकोस होता है? आइए जानते हैं।
100 ml खून में 100 mg शुगर होता है।
इसलिए 1000 ml खून में 1000 mg शुगर होता है.
अब अगर हम ml को और mg को क्रमशः लीटर व ग्राम मे परिवर्तित करे तो हमें मिलेगा कि एक निश्चित समय में 1 लीटर खून में 1 ग्राम शुगर होता है। हमारे शरीर में औसतन 5 लीटर खून होता है। इसलिए एक निश्चित समय में हमारे खून में 5 ग्राम शुगर होता है। 1 ग्राम शुगर का ग्लाइसेमिक लोड 1 होता है। 1 ग्राम शुगर या 1 ग्लाइसेमिक लोड से 20 यूनिट ब्लड ग्लूकोस बढ़ता है। इस तरह 5 ग्राम शुगर से100 यूनिट ब्लड ग्लूकोस बढ़ता है। मतलब एक चम्मच शुगर से 100 यूनिट ब्लड ग्लूकोस बढ जायेगा। इसलिए खाने का ग्लाइसेमिक लोड जितना कम होगा उतना हमें डायबटीस में फायदा होगा। हम बड़ी आसानी से ग्लाइसेमिक लोड निकाल सकते है।
ग्लाइसेमिक लोड निकलने के लिए हमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स पता होना जरूरी है।
ग्लाइसेमिक लोड ग्लाइसेमिक इंडेक्स X कुल कार्बोहाईड्रेट्स /100 जैसे- ग्लूकोस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 100 है।
100 ग्राम ग्लूकोस में कार्बोहाईड्रेट्स हैं 100 ग्राम।
इसलिए 100 x 100/100 =100 तो 100 ग्राम ग्लूकोस का ग्लाइसेमिक लोड 100 हुआ।
दूसरा मानक है ग्लाइसेमिक लोड। ये मानक यह तय करता है की कौन सा खाना कितनी मात्रा में ब्लड ग्लूकोस बढ़ाएगा।
कम ग्लाइसेमिक लोड (कम जीएल): 0 से 10
मध्यम ग्लाइसेमिक लोड (मेड जीएल): 11 से 19
उच्च ग्लाइसेमिक लोड (उच्च जीएल):20 और अधिक
अब हमारे पास डायबिटीज में डाइट तय करने का वैज्ञानिक आधार है। हमे ये पता है जिस खाने का ग्लाइसेमिक इंडेक्स और ग्लाइसेमिक लोड कम है वही खाना हमारे ब्लड ग्लूकोस को कम कर हमारे टाइप 2 डायबिटीज को पूरी तरह ठीक कर सकता है।
कुछ खाने का विश्लेषण कर के देखते है।
आम धारणाः सफेद चावल डायबिटीज में नहीं खाना चाहिए ब्राउन चावल ठीक रहता है।
वैज्ञानिक तथ्यः सफेद चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 64 और ग्लाइसेमिक लोड 33 है। ब्राउन चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 55 और ग्लाइसेमिक लोड 23 है। डायबिटीज डाइट मे ग्लाइसेमिक इंडेक्स 55 से कम और ग्लाइसेमिक लोड 15 से कम होना चाहिए इस विश्लेषण के आधार पर कोई भी चावल डायबिटीज डाइट में किसी भी प्रकार के चावल खाने की सिफारिश नहीं की जाती।
आम धारणाः फीका दूध अच्छा है चीनी या मीठा डालकर दूध नहीं पी सकते।
दूध एक डाई सैक्राइड्स है जो ग्लूकोसऔर ग्लेक्टोसे से बना होता है। इसका मतलब दूध में प्राकृतिक रूप से चीनी मिली हुई है। शरीर में पहुंचने पर हमारे एंजाइम दूध को ग्लूकोस और ग्लेक्टोस में तोड़ देते है जिसके कारण शरीर में ब्लड ग्लूकोस स्तर बढ़ जाता है। कितना बढ़ता है इसे हम ग्लाइसेमिक इंडेक्स और ग्लाइसेमिक लोड से समझते है।
250ml दूध का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 45 और ग्लाइसेमिक लोड 5 है इस विश्लेषण से हम कह सकते है फीका दूध 1 दिन में 200ml तक पीना ठीक है। अब हम ये जान चुके हैं कि एक निश्चित समय में लगभग 5 ग्राम शुगर यानि 100 यूनिट ब्लड ग्लूकोस हमारे खून में रहता है। शरीर में ऊर्जा की खपत के लिए ये ब्लड ग्लूकोस इन्सुलिन की मदद से कोशिकाओं में जाता है। वहां कोशिकाएं इसे ऊर्जा में बदल देती है। अधिक ग्लूकोस होने पर कोशिकाएं ग्लूकोस को ग्लाइकोजन के रूप में स्टोर कर लेती है, जिससे कि बहार से प्रयाप्त मात्रा में कार्बोहाईड्रेट्स न मिलने पर प्रयोग में लाया जा सके। ये एक सामान्य प्रक्रिया है। जो जीवन भर चलती रहती है।