उमा
टीम श्रमयोग ने सामाजिक पूंजी बढ़ाओ अभियान के तहत, 8 फरवरी से 11 फरवरी 2024 तक न्याय पंचायत चांच, विकास खण्ड सल्ट, जिला अल्मोड़ा, उत्तराखंड के गडकोट, मसणियांबाँज, बीच झिमार व गुलार तथा 23 फरवरी को भीताकोट के गडपपड़ीया और घुरवाढूँगा में अध्ययन यात्रा आयोजित की। श्रमयोग टीम ने अपने मंथन कार्यक्रम में यह तय किया था कि, हम लोग 8, 9 और 10 फरवरी को गडकोट, मसणियांबाँज, गुलार के क्षेत्र में अध्ययन यात्रा करेंगे, जिससे सामाजिक पूंजी बढ़ाओ अभियान के तहत क्षेत्र विस्तार हो सके। पहले दिन यानि 8 फरवरी को श्रमयोग सदस्य गड़कोट क्षेत्र में पहुंचे, अध्ययन यात्रा दल में श्रमयोग के अजय, विक्रम, आसन, रेनुका, राकेश, अनीता और उमा शामिल थे। हमने यात्रा से पहले गड़कोट निवासी जगत सिंह जी को सूचित किया था, जिससे हमारी यात्रा सुगम रही, सबसे पहले हम मल्ला गड़कोट के धुरकोटी बाखली में श्री आलम सिंह जी के निवास पर पहुँचे, जहां उन्होंने हमें चाय-पानी पिलाया और सबकी बैठने की व्यवस्था की। धीरे-धीरे अन्य लोग भी आते रहे लगभग 15-20 के आसपास महिलाएं, पुरूष और किशोरियां वहां इकट्ठा हो गए, हमने अपने यहां आने की वजह सभी को बतायी, सबसे पहले हमने सामाजिक पूंजी बढ़ाओ अभियान पर चर्चा की, तथा लोगों को समझाया कि सामाजिक पूंजी का महत्व क्या है? फिर रचनात्मक महिला मंच पर विस्तार से बात की गयी, लोग काफी ध्यानपूर्वक हमारी बातें सुन रहे थे, वहीं लोगों के बीच बैठी एक किशोरी रोशनी ने श्रमयोग पत्र में मंच की संरक्षक निर्मला देवी जी का आर्टिकल पढ़ा। लोगों को रचनात्मक महिला मंच का कैलेंडर भी दिखाया गया, जिसे दो लोगों ने खरीदा भी। धीरे-धीरे हमारी बातें समाप्ति की ओर थीं तथा हमने महिलाओं से पूछा यदि आप लोग चाहते हैं कि आप लोग भी संगठन से जुडें तो, हम हर माह आपके यहां बैठक करने के लिए आना चाहेंगे, जिसमें लोगों ने सहमति जताई सभी ने यह तय किया कि अगले माह 7 तारीख को गड़कोट मल्ला में बैठक की जाएगी।
इसके बाद यात्रा दल गड़कोट तल्ला की ओर रवाना हुआ, हम में से किसी को भी रास्ते का कोई पता नहीं था, तो हम रास्ता भटक गए लेकिन फिर भी हम जिस रास्ते पर चल रहे थे उसी पर चलते रहे रास्ता पूरा जंगल की ओर जाने लगा हम लोग सहम गये क्योंकि गांव एक ओर छूट रहा था और रास्ता दूसरी ओर जा रहा था, दूर पहुंचकर एक महिला मिली हमने उनसे रास्ता पूछा उन्होंने बोला कि मेरे पीछे-पीछे चलते रहो, और हम चलते रहे आखिरकार हम तल्ला गड़कोट में पहुंच गए, अब हमें समझ नहीं आया कि हम गांव में किसके घर जाएं। घरों के आगे और गौशालाओं में हमें लोग मिलते रहे, आखिर में हम आनंद सिंह जी के घर पर पहुंचे उन्होंने हमें चाय-पानी पिलाया। वहां पर आनंद सिंह जी, उनकी पत्नी और उनके भतीजे थे जिन्होंने हमसे हमारा यहां आने का कारण जानना चाहा हमने उन्हें श्रमयोग और रचनात्मक महिला मंच के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा हमारा यह क्षेत्र सल्ट के दूरस्थ क्षेत्रों में आता है। हमारा ब्लाॅक, तहसील, बाजार गांव से बहुत दूर है सड़क में जाने के लिए आधा घंटा लगता है, अगर कोई गंभीर बीमार हो तो चारपाई में लेकर जाना पड़ता है। गेहूँ हम लोग अपने ही खेतों में उगा लेते हैं लेकिन पिसवाने के लिए पैसिया जाना पड़ता है, जिसमें अधिक पैसा और पूरा दिन महिलाओं का लग जाता है। इसके बाद उनकी पत्नी से कहा कि वह अगले माह महिलाओं को बैठक के लिए सूचित करते हुए एकत्रित करके रखेंगे, और हम उनके साथ भी संवाद करना चाहेंगे, इसी उम्मीद के साथ यात्रा दल अपने अगले पड़ाव कंडारीढ़य्या में पहुँचा, जहां हम अंजू देवी जी के घर पर बैठे। कुछ देर में लगभग सात-से-आठ महिलाएं वहां पर आ गयीं। अपना परिचय देते हुए हमने उनसे संगठन में आने की बात कही वहां की महिलाओं ने कहा की हम ब्लाॅक वाले समूह में तो जुड़े हैं किंतु हमें समूहों के विषय में कोई जानकारी नहीं है और न ही हमें किसी ने आज तक इस बारे में बताया। उसके बाद हमने विस्तार से उन्हें संगठन के बारे में बताया जिसके बाद उनका कहना था कि हम सब लोग असुविधाओं में जी रहे हैं आज तक किसी ने अपने हक के लिए संघर्ष नहीं किया किंतु अब हम आपके साथ जुड़ने के लिए तैयार हैं, आप लोग अगले माह 9 तारीख को यहां आईये। अंत में जन गीत ’’हम भी यहां चंद घड़ी’’ के साथ अध्ययन यात्रा दल श्रमयोग रचनात्मक केन्द्र गिंगडे़ लौट आया।
9 फरवरी को अध्ययन यात्रा दल सुबह 11 बजे मसणियांबाँज पहुंचा। यात्रा दल में आसना, विजय, विक्रम, अनीता, रेनुका और उमा शामिल थीं। यहाँ पहुँचने पर हमें पता चला कि आज महिलाएं मनरेगा कार्य में गयी हैं, जहां पर ग्राम प्रधान जी द्वारा पारंपरिक चक्की, घट (घराट) बनाई जा रही थी। हम लोग भी वहीं पहुंचे, हमें वहां का रास्ता पता नहीं था तो मेरी सहेली आशा हमें लेकर वहां गई। जहाँ पर यह काम चल रहा था। वह सड़क से काफी दूरी पर था। हम लोग वहाँ पहुंचे तो हमें कुछ महिलाएं और पुरुष मिले, जो वहां घट बनाने का काम कर रहे थे। हमने वहीं पर उनका समय लेकर उनके साथ संगठन, और श्रमयोग के विचार से उन्हें अवगत कराया, उन्होंने हमें अपने गांव की अनेक समस्याओं पर बात की जिसमें स्वास्थ, शिक्षा, खेती बाड़ी की बातें शामिल थीं। बातचीत खत्म होने के बाद हम लोग वापस ऊपर गांव में आ गए। गांव में हमने फिर कुछ महिलाएं मिली जिनसे हमने बात की, उन्होंने कहा कि आप लोग अगले माह हमारे गांव में आईए हम लोग विस्तार से चर्चाएं करेंगे। इसके बाद यात्रा दल बीच झिमार पहुँचा। काफी समय तक कोई भी नहीं आया, यहाँ पर हमारी बात पुष्पा देवी जी के साथ हुई, पर कुछ देर में धीरे-धीरे लोग आने लगे, फिर हम लोग बैठे और सभी ने अपना परिचय दिया, फिर अध्ययन यात्रा की बात होने लगी और सभी को बताया गया कि हम कौन हैं? तथा यहां क्यों आए हैं ? संगठन और मंच के बारे में विस्तार से बात की गई। महिलाओं का कहना था हम लोग आपस में तय करके आप लोगों को सूचित कर देंगे की आप अगले माह किस दिनांक पर हम बैठक करेंगे इसी के साथ अध्ययन यात्रा दल श्रमयोग रचनात्मक केन्द्र गिंगडे़ लौट आया।
10 फरवरी को अध्ययन यात्रा का तीसरा दिन था, जिसमें यात्रा दल गुलार गांव में पहुँचा। सबसे पहले हम सलोना बाखली में गए, गुलार के प्रधान जी से मेरी बात हुई थी, उन्होंने लोगों को एकत्र करने में बहुत सहयोग किया। सलोना बाखली सड़क से काफी दूर था।यहाँ पहुंचने से पहले हमें वहाँ सरसों के हरे-भरे खेत देखने को मिले, गांव में एक बड़ी सी पानी का टेंक बना हुआ था। जहाँ से खेतों को सिंचाई के लिए एक चैड़ी नहर बनाई गई थी। गांव में पहुंचते ही हमने ग्रामीणों से प्रधान जी के घर का पता पूछा, प्रधान जी की पत्नी से हमारी मुलाकात हुई और उन्होंने चाय और पानी पिलाया। धीरे-धीरे महिलाएं आने लगी थीं फिर हमने अपने आने का उद्देश्य उन्हें बताया तथा परिचय दिया। समूह संगठन पर चर्चा करते हुए मानव वन्य जीव संर्घष पर रचनात्मक महिला मंच के प्रयासों को बताया गया। अकेले रहने और संगठन में रहने के अनेक उदाहरणों को महिलाओं के बीच रखा गया। गांव की महिलाओं ने कहा गांव से रोड बहुत दूर है। गुलार गांव ब्लॉक से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है, जो बहुत ही दूर है। यहां का मुख्य प्राथमिक अस्पताल रतखाल या और सामुदायिक अस्पताल देवायल है जो यहाँ से लगभग 32 किलोमीटर की दूरी पर है। ग्रामीणों का कहना है कि हमारे यहां मनरेगा का काम भी नहीं होता है। खेती अभी लगभग बची हुई है, गांव में अभी काफी लोग मौजूद हैं, गाय भैंस बकरियां लगभग हर घर में पाई जा रहीं हैं। खेतों में मिर्च, मड़वा, सरसों, गेहूं होता है। श्रमयोग पत्र पढ़ते हुए सामाजिक मुद्दों पर आवाज उठाने की बात कही गयी।
इसके बाद यात्रा दल सलोना बाखली से गुलार के दूसरे तोक तिमिल ढैय्या में पहुंचा। यहाँ पर मेरी बात चंद्र प्रकाश जी से हुई थी, उन्होंने भी लोगों को सूचित करने की कोशिश की थी, और हमारा सहयोग किया। यहां पर लगभग 9-10 लोग हमें मिले। हम लोग मंदिर के प्रांगण में बैठे और चाय पानी पीते हुए हमने अपने आने का उद्देश्य महिलाओं को बताया। जो बातें अब तक अध्ययन यात्रा के दौरान सभी को बताई जा रही थी वह यहाँ पर भी बताई गई, उन्होंने कहा कि लगभग 10-20 साल पहले हमारे यहां एक समूह बनाया गया था जिसमें लोगों ने धोखाधड़ी की और रुपयों की हेरा फेरी की, जिसके बाद सभी लोग समूह बनाने की बात से डरते हैं। लोगों को बताया गया कि हमारा उद्देश्य पैसे जमा करना नहीं है, हम सामाजिक मुद्दों पर बातचीत करना चाहते हैं, और अपने गांव समाज को एक बेहतर दिशा में ले जाने के लिए मिलकर काम करते हैं। उसके बाद सर्व सहमति से यह तय किया कि अगले माह 12 तारीख को हम फिर से बैठेंगे।
इसके बाद यात्रा पनासी बाखली के लिए निकल पड़ी, चंद्र प्रकाश जी हमें आधे रास्ते तक छोड़ने आए। पानासी बाखली में मेरी बात दयाल सिंह जी के साथ हुई थी, जब हम वहाँ गए तो दयाल सिंह जी बकरियों के साथ गए थे, लेकिन उन्होंने सभी को पहले से ही सूचित किया था। हम उन्हीं के घर पर गए वहां लोग एकत्र हुए जहां पर हमने सभी को अपना परिचय दिया। लोगों का कहना था कि धीरे-धीरे खेती बंजर हो रही है, जंगली जानवरों का आतंक बढ़ रहा है, एक ताऊ जी का कहना था कि हमने यहां पर आंगनबाड़ी बनाने के लिए एसडीएम से बात की थी लेकिन आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई, जबकि हमारे यहां काफी बच्चे हैं। हमने उन्हें बताया कि व्यक्तिगत तरीके से और संगठित रूप से कार्य करने में बहुत अंतर होता है। जिसके बाद यह तय हुआ कि अगले माह की 13 तारीख को हम फिर से यहां आएंगे और अध्ययन यात्रा दल फिर लौट आया।
23 फरवरी को यात्रा दल में विजय, अनीता, उमा, विक्रम और आसना शामिल थे। यात्रा पहले भीताकोट ग्राम पंचायत के गढ़पापड़ी तोक में पहुँची, जिसके लिए पहले ही हमारी बातचीत ग्राम प्रधान जी से हो गयी थी और उन्होंने भीताकोट में अध्ययन यात्रा के दौरान अपना पूरा सहयोग दिया। भीताकोट अल्मोड़ा का आखरी गांव है इस क्षेत्र में, गधेरे के बाद पौड़ी गढ़वाल का नैनीड़ाँडा ब्लॉक का क्षेत्र शुरू हो जाता है। गढ़पापड़ी सड़क से लगभग 1 किलोमीटर चढ़ाई पर स्थित गांव है। यहीं प्रधान जी का घर था। यहाँ पर हमें 8-10 महिलाएं मिली हमने उनसे बातचीत की और बातचीत के दौरान कई सारे विषयों पर चर्चाएं हुई, उन्हें श्रमयोग की विचारधारा से अवगत कराते हुए संगठित रहने पर जोर दिया गया। महिलाओं का कहना था कि हमें भी संगठन में जुड़ना चाहिए तथा अपनी सामाजिक मुद्दों पर चर्चा और उनका समाधान खोजना चाहिए, जिसके चलते उन्होंने कहा कि आप लोग अगले माह आप 23 तारीख को आईए। प्रधान जी का कहना था कि हमारे यहां पानी की अच्छी सुविधा है, जिसके चलते उन्होंने अपने घर पर मत्स्य पालन के लिए एक तालाब बनाया है, जिसमें 1500 में मछलियां होंगी। भीताकोट में खेती काफी अच्छी है। हरे-भरे खेतों में आजकल सरसों तथा गेहूं लहरा रहे हैं। प्रधान जी की भाभी जी ने हमारे लिए खाना बनाया था, खाने से पहले प्रधान जी ने अपनी परंपरा अनुसार हमें टीका लगाकर खाना खिलाया। पहाड़ों में मेहमानों को टीका लगाने की परंपरा काफी पुरानी समय से चली आ रही है।
खाना खाने के बाद यात्रा दल घुरवाढूँगा के लिए निकल पड़ा। प्रधान जी ने यहाँ सुरेश कोठारी जी से संपर्क करने को कहा था और कोठारी जी ने महिलाओं को यात्रा की सूचना दी थी। हमने यहाँ पर भी महिलाओं से बात की। उनका कहना था कि हमारा गांव मुख्य सड़क से बहुत दूर है। हमें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, लेकिन अपने मुद्दों पर संघर्ष करने के लिए हमने एक होने की कोशिश नहीं की। हालाँकि गांव के सामूहिक कार्यक्रमों में सभी की भूमिका अच्छी है, किंतु हमें अपने अधिकारों के लिए भी एक होना पडे़गा। आप लोग अगले माह भी हमारे गांव में आइए। हम लोग संगठित होना चाहते हैं, अगले महिने आने के वादे के साथ यात्रा दल लौट आया और गड़कोट गुलार भीताकोट अध्ययन यात्रा को अगली यात्रा तक समाप्त कर दिया।
बहुत ही अच्छा काम आपके द्वारा महोदय धन्यवाद