अजय
पिछले 10-12 वर्षों में अपने कार्यक्षेत्र में कार्य करते हुए हमने पर्वतीय ग्रामीण समुदायों की स्वास्थ्य सम्बन्धी जरूरतों को नजदीक से देखा है। यहाँ स्वास्थ्य सम्बन्धी जरूरतों का दायरा बहुत व्यापक है। मसला विषम भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से हस्पतालों तक पहुंच व उनमें चिकित्सकों व अन्य प्रशिक्षित स्टाॅफ की कमी का तो है ही साथ में गांव के स्तर पर उपलब्ध हो सकने वाली स्वास्थ्य सेवाओं के न होने का भी है। अपनी हाल की अध्ययन यात्रा में हमें पाया की कई गावों में 10 किलोमीटर के दायरे तक इंजेक्शन लगाने की सुविधा तक उपलब्ध नहीं है। सरकार अपने बजट का कम हिस्सा स्वास्थ सम्बन्धी जरूरतों के लिए दे रही है। परिणाम स्वरुप गांव स्तर पर किये जा सकने वाले कार्यों का प्रचार प्रसार तक नहीं हो पा रहा है। यदि आकड़ों की दृष्टि से देखे तो उत्तराखंड में वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच कुल 798 महिलाओं ने प्रसव के दौरान या प्रसव से जुड़ी मुश्किलों के चलते दम तोड़ा। वर्ष 2016-17 में राज्य में कुल 84 मातृ मृत्यु हुई। 2017-18 में 172, 2018-19 में 180, 2019-20 में 175 और 2020-21 में 187 महिलाओं ने बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया में जान गंवाई। सूचना का अधिकार (आरटीआई) के जरिये ये आंकड़े हासिल किए गए हैं। उत्तराखंड के लिए चिंता की बात ये है कि यहां प्रसव के दौरान होने वाली मौतें कम होने की जगह बढ़ रही हैं। वर्ष 2016-18 के बीच मातृ मृत्युदर का राष्ट्रीय औसत 113 था।राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 के अनुसार यदि बहुत सामान्य सूचकों को भी देखें तो राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में 5 वर्ष से छोटे 56 प्रतिशत बच्चे खून की कमी (एनेमिक) का शिकार हैं। महिलाओं की स्थिति भी ठीक नहीं है। 15 से 49 वर्ष की 44 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं खून की कमी (एनेमिक) का शिकार हैं। राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 57 प्रतिशत महिलाएं ही प्रसव पूर्व 4 जांचें प्राप्त कर पा रही हैं। 5 वर्ष से छोटे बच्चों की मृत्यु दर 45 (प्रति 1000 पर) है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय आंकड़ा 36 (प्रति 1000 पर) है।ऐसी परिस्थितियों में ग्रामीण स्वास्थ्य के विषय को जन अभियानों और जन आंदोलनों का विषय बनाने की आवश्यकता है। लेकिन पहले व्यापक समझ जरूरी है। इसलिए ग्रामीण जीवन में स्वास्थ्य सम्बन्धित मुद्दों की व्यापक समझ प्राप्त करने, स्वास्थ्य चेतना के प्रसार तथा स्वास्थ्य स्वावलंबी कार्यकर्ता के प्रशिक्षण और निर्माण के उद्देश्य से श्रमयोग तथा हेल्थ एजुकेशन आर्ट लाइफ फाउंडेशन (हील) अल्मोड़ा जिले के सल्ट विकास खंड में 15 मार्च से 15 जून 2024 तक लगभग 50 गावों में जन चेतना यात्रा आयोजित करने जा रहे है। आशा है इससे भविष्य में नये फलक खुलेंगे।