लोकसभा के लिए चुनावों की घोषणा हो चुकी है। चुनाव 19 अप्रैल से 1 जून तक सात चरणों में होंगे और 4 जून को मतों की गिनती की जाएगी। चुनावों से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि भारतीय स्टेट बैंक चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बाॅन्ड का ब्यौरा सौंपे और चुनाव आयोग उसे अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित करे।
चुनाव आयोग ने जब अपनी वेबसाइट पर इस ब्योरे को प्रदर्शित किये तो बवंडर खड़ा हो गया। कहाँ तो केंद्र सरकार ने राजनैतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे को पारदर्शी बनाने के नाम पर इस बाॅन्ड योजना की शुरुवात की थी और कहाँ जब पिटारा खुला तो मंजर कुछ और ही निकला।
गौरतलब है कि स्टेट बैंक द्वारा दी गई सूचना आधी अधूरी है। उसमे बाॅन्ड के क्रमांक अंकित नहीं है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को नोटिस जारी कर पूछा है की इसमें नंबर दर्ज क्यों नहीं हैं। देखना होगा की बैंक क्या स्पष्टीकरण देता है।
जवाब सवाल का दौर तो चलता रहेगा पर इस पूरे खेल को देखकर देश का आम नागरिक भौचक है और हजारों करोड़ रुपयों के इस खेल के सामने आने पर सन्न भी है। एक फ्यूचर गेमिंग नाम की कंपनी ने 1300 करोड़ रुपयों से भी ज्यादा के बॉन्ड खरीदे। लिस्ट में शामिल टॉप के बीस खरीददरों ने 5000 करोड़ रुपयों से ज्यादा के बॉन्ड खरीदे जो कुल बिक्री का 48 प्रतिशत है। तो क्या देश का लोकतंत्र इन बीस खरीदारों के जेब में गिरवी है। यह भी बताया जा रहा है की टॉप पांच खरीदारों में से तीन ने ईडी या आयकर विभाग के कार्यवाही के बाद बांड खरीदे। तो क्या बॉन्ड के इन खरीदारों को डरा धमका कर इनसे बांड के रूप में वसूली की गई। बांड की कुल राशि में से 47 प्रतिशत राशि अकेले भारतीय जनता पार्टी को मिली जबकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को 11 प्रतिशत दान मिला। ये सब आंकड़े जो पिक्चर बयां कर रहे हैं उसे समझाना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं होगा।
जो भी हो रहा है ये हमारे लोकतंत्र के लिए धीमे जहर की तरह है। इससे आम जन का भरोसा इस तंत्र से टूट रहा है। वो अपने को ठगा महसूस कर रहा है।
आखिर वो किस पर भरोसा करे?
पर चुनाव सर पर है तो वो चुनाव में अपने मत के द्वारा इसका जवाब तो देगा।
सोचने वाली बात है और चिंता का विषय है।
लेकिन राम मंदिर का तोहफ़ा इस चुनाव को एक तरफा करेगा ऐसा लगता है इसलिए शायद इलेक्टोरल बॉन्ड कम चर्चित होता जा रहा है।