प्रकृति

मनीष रावत

जब भी छत से बैठकर, देखता हुँ ढलती शाम
अरब सागर मे डूब रहा होता है, सूरज लेकर अल्पविराम

निकल पड़ते हैं परिंदे, होते ही शाम
अँधेरे से पहले पहुँच, ठिकाने करे आराम
अपनी चहचहाहट से सुबह , देते सबको पैगाम
उठ कर साथियों करो, सूरज की सुनहरी किरणों को सलाम

फिर भी सोता, रहता है इंसान
सब जानकर भी, होता है अंजान
जब हार जाता है, करके कोशीश तमाम
फिर रोता है, होकर जीवन से परेशान

अंत में जब हो जाता, है जीवन दुखी और वीरान
तब याद आता है अल्लाह, वाहेगुरु, ईशा और भगवान

🌻 एक छोटी सी काव्य रचना जिसको प्रकृति ने प्रेरित किया है मुझे लिखने के लिए 🌻

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