उत्पीड़न के जवाब में सड़कों पर संघर्ष करती महिलाएं

अजय कुमार

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में महिला डॉक्टर के रेप और हत्या के बाद देशभर में गुस्से का माहौल है। जगह-जगह लोग इसके विरोध में सड़कों पर हैं। यह गुस्सा सिर्फ इस एक मामले को लेकर ही नहीं है, वरन हर रोज महिलाओं के साथ हो रही बदसलूकी, हिंसा व दुराचार से जमा होता रहता है और फिर किसी घटना के बाद फट कर सड़कों पर आ जाता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार हमारे देश में प्रत्येक 16 मिनट में एक बलात्कार होता है। हर रोज बलात्कार के 86 मामले म दर्ज होते हैं और यह तब है जब बलात्कार के 63 प्रतिशत मामले दर्ज ही नहीं होन पाते। भयमुक्त व सुरक्षित समाज का झूठा दावा करने वाली हमारी सरकारें आखिर कब आंखे खोलेंगी।
बेटियों को बचाने व पढ़ाने की बात करने वाले हमारे देश में शिक्षा के संस्थान, अस्पताल, जन यातायात, कार्यक्षेत्र, बाजार आखिर कौन सी जगह ऐसी है जिसे हम महिलाओं के लिए सुरक्षित होने का म दवा कर सकते हैं। सबसे अधिक चिंता की बात तो यह है कि घर में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के विरुद्ध अपराध का एक बड़ा भाग पति या रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता के रूप में चिन्हित किया गया, जो कुल मामलों का 31.4 प्रतिशत था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 89 प्रतिशत मामलों में बलात्कारी जान पहचान का व्यक्ति होता है।
हम जैसे-जैसे मुल्क की तरक्की का दावा कर रहे हैं, वैसे-वैसे हमारे यहाँ महिलाओं के साथ बलात्कार, हिंसा व हत्या के मामले भी बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत भर में महिलाओं के विरुद्ध अपराध के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किये गए, यानी प्रत्येक घंटे लगभग 51 मामले और यह पिछले वर्ष की तुलना में 4 प्रतिशत – अधिक हैं। हमारे अखबार हर रोज
महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा, न बलात्कार व हत्या की खबरों के साथ इन आंकड़ों के तस्दीक करते हैं।
इन घटनाओं के खिलाफ महिलाएं व समाज का संवेदनशील तबका जब तब व सड़कों में उतरकर अपने गुस्से का इजहार करता है व सख्त से सख्त कानून बनाने की मांग करता रहता है और ऐसा होना भी चाहिए। परन्तु पिछले दिनों आई व एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स = और नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट कुछ और ही तस्वीर पेश करती है। हमारे देश में कानून बनाने की जिम्मेदारी देश व में संसद व राज्यों में विधान मंडलों की व होती है। इस रिपोर्ट में 4,809 में से 4,693 सांसदों और विधायकों के चुनावी म हलफनामों का विश्लेषण किया गया। विश्लेषण में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि 16 मौजूदा सांसदों और विधायकों क पर बलात्कार के आरोप हैं। साथ ही कुल 151 सांसद व विधायकों पर महिलाओं से जुड़े अपराध के मामले दर्ज हैं। उन 151 में से 16 मौजूदा सांसद हैं और 135 मौजूदा विधायक हैं।

एडीआर रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी के नेता महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित 54 मामलों के साथ पहले नंबर पर हैं। इसके बाद कांग्रेस के 23 और टीडीपी के 17 नेताओं के खिलाफ मामले क दर्ज हैं। बीजेपी और कांग्रेस के पांच- पांच सांसदों और विधायकों पर बलात्कार के आरोप हैं। आम आदमी क पार्टी, बीएपी, एआईयूडीएफ, तृणमूल कांग्रेस और टीडीपी के एक-एक सांसद या विधायक पर बलात्कार के आरोप हैं। जिस देश में हर घंटे 51 महिलाएं अपराध का शिकार हो रही हैं उस मुल्क की विधायिका ही जब दागदार है तो किसी भी तरह की उम्मीदों को झटका लगना लाजमी है।
आज महिलाओं के लिए हर जगह जोखिम है। पढ़ाई-लिखाई करने के बाद युवाओं की तरह युवतियां भी अपने सपनों को पंख देने के लिए महानगरों में जाना है चाहती है। अपने लिए काम खोजती हैं व और काम पाकर पैसा कमाकर एक
खुशहाल जिंदगी जीना चाहती है। पर ये शहर उनके लिए कितने सुरक्षित रह गए हैं ? एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में 20 लाख से अधिक आबादी वाले 19 महानगरों में महिला अपराध के 48,755 मामले दर्ज हुए हैं, 2021 में यही आंकड़ा 43,414 था। देश के 19 महानगरों में दिल्ली, लखनऊ, गाजियाबाद, कानपुर, पटना, अहमदाबाद, बंगलूरू, चेन्नई, कोयंबटूर, हैदराबाद, इंदौर, जयपुर, कोलकाता, कोच्ची, कोझिकोड, मुंबई, नागपुर, पुणे और सूरत महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील बन गये हैं। हम इन आंकड़ों को सिर्फ गणित के अंक भर न समझें। किसी भी महिला, युवती, किशोरी या बच्ची के साथ होने वाली हिंसक घटना उस महिला, युवती, किशोरी या बच्ची को जिंदगी भर के लिए सदमा व त्रासदी देती हैं और उसके लिए जीवन को बोझिल बना देती हैं। उत्तराखंड राज्य में हम आज भी अंकिता भंडारी (अंकिता भंडारी की सितम्बर 2022 में हत्या कर दी गई थी) के माता-पिता के संघर्ष को देख रहे हैं। ऐसा नहीं है कि यहाँ अंकिता भंडारी की हत्या के बाद सबक लिये गये हों या कुछ भी ठीक हुआ हो। पिछले दिन देहरादून में अंतर्राज्यीय बस अड्डे पर हुई घटना हो या अन्य घटनाएं, महिलाओं के लिए कठिनाइयां बढ़ रही हैं। वो बेहद असहजता के साथ जीवन जीने को मजबूर हैं और मजबूरी में पितृसत्तात्मक सौदेबाजी करती हैं।
महिलाओं के साथ होने वाले जघन्य अपराधों को रोकने के लिए बहुत से कानून नियम व व्यवस्थाएं बनी हैं। पर सवाल यह है की उनका कितना क्रियान्वयन हो पा रहा है। कानून तो कहता है कि ऐसे मामलों में जांच दो महीने में पूरी होनी चाहिए और ट्रायल भी दो माह में पूरा कर लिया जाना चाहिए। पर कितने मामलों में ऐसा हो पा रहा है। इसी तारा पॉक्सो कानून के तहत एक वर्ष में सुनवाई पूरी हो जानी चाहिए, पर ऐसा कहाँ होता है। अन्यथा सुप्रीम कोर्ट को सभी हाईकोर्ट को यह निर्देश नहीं देना पढता कि वे यह सुनिश्चित करें कि पॉक्सो एक्ट के मामलों की सुनवाई स्पेशल कोर्ट में तेजी से हो।
महिलाओं के खिलाफ होने वाले जघन्य अपराधों के खिलाफ मुखर तो होना ही होगा। महिलायें मुट्ठी बांधकर सड़कों पर हैं। समाज के हर संवेदनशील व्यक्ति को साथ में खड़ा होना चाहिये। इस पर हर मोर्चे पर हर मंच पर बात करनी होगी। ऐसे मामलों को ढका या दबाया बिलकुल भी नहीं जा सकता, हाँ यह बात जरूर ध्यान देने की है कि ऐसा करते हुए हर महिला की निजता व सम्मान का जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए बलात्कारियों व अपराधियों की पहचान को सार्वजनिक करना जरूरी है, और यह भी ध्यान रखना होगा कि पितृसत्ता के दम्भ में डूबे लोगों को कहीं से भी बच निकलने का रास्ता न मिले।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top