राकेश
लद्दाख में पिछले कुछ समय से बहुत हलचल है। राज्य की जनता पूर्ण राज्य की मांग करते हुए लद्दाख को 6ठी अनुसूची में शामिल करने की माँग के साथ आन्दोलनरत है। लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए, राज्य की अलग विधानसभा हो, लद्दाख को 6ठीं अनुसूची में शामिल किया जाए आंदोलन की मुख्य मांगे हैं। संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा, और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिए प्रावधान करती है। यह अनुसूची जनजातीय आबादी के अधिकारों की रक्षा के लिए इन क्षेत्रों को स्वायत्त स्थानीय प्रशासन का अधिकार देती है।
लद्दाख के लोग लद्दाख का संरक्षण और लद्दाख में लोकतंत्र की स्थापना चाहते हैं। उनका कहना है कि लद्दाख के साथ धोखा हुआ है। सन 2019 में केन्द्र में सत्तारूढ़ बीजेपी ने हमसे वादा किया था कि हम लद्दाख को छठीं अनुसूची में शामिल करेंगे। 2020 आते-आते बीजेपी अपने इस वादे को भूल गई और अब उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि हम आपकी मांग नहीं मान सकते। लद्दाख में लोगों का आन्दोलन मुख्य धारा की मीडिया से बिल्कुल गायब है।
लद्दाख के लोगों का कहना है कि केन्द्र सरकार केवल आश्वासन देती है मांगो को पूरा नहीं करती है। लोगो का कहना है कि हम समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार इस काम को क्यों नहीं करना चाहती। उनका कहना है कि पूँजीपति नहीं चाहते कि लद्दाख छठी अनुसूची में शामिल हो। लद्दाख के लोगों को लगता है कि सरकार पर इन्हीं पूँजीपतियों का दबाव है। क्योंकि अगर लद्दाख 6ठीं अनुसूची में शामिल होता है तो वे आसानी से लद्दाख के संसाधनों का दोहन नहीं कर पाएंगे।
लद्दाख में चल रहे अनशन व आन्दोलन को लेकर सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंग रही है। वहाँ सोनम वांगचुक के अनशन के 18 दिन बीत चुके हैं। देश के अन्य हिस्सों में ऐसा आन्दोलन करना और लद्दाख में आन्दोलन करने में जमीन आसमान का अंतर है। क्योंकि वहां हर रात को तापमान माइनस 14 डिग्री से माइनस 17 डिग्री तक जा रहा है। सोनम वांगचुक के साथ दिन के समय हजारों लोग तथा रात में सैकड़ो लोग रह रहे हैं। अब देखने वाली बात यह है कि सरकार लद्दाख के लोगों की सुध कब लेती है।