जंगलों में आग आज वैश्विक चिंता का विषय है

शंकर दत्त

बहुत से अध्ययन बता रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन ने हाल के वर्षों में दुनियाभर में जंगलों में आग लगने की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि की है। बढ़ते तापमान, लंबे समय तक सूखा और भारी वर्षा आग के फैलने और तीव्र होने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाती हैं। वनों की कटाई, भूमि उपयोग में परिवर्तन और आकस्मिक प्रज्वलन सहित मानवीय गतिविधियों से यह समस्या और भी बढ़ जाती है। हाल के आँकड़े बताते हैं कि जंगल की आग का जलवायु, पशुधन, मानव जीवन, वन्य जीवन और संपत्ति पर गम्भीर प्रभाव पड़ा है।

पिछले कुछ वर्षों मे बढ़ते तापमान के साथ, उत्तराखंड राज्य में भी जंगल की आग लगातार बढ़ती जा रही है। इस बार फायर सीजन में 15 जून तक 1,242 आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं इससे 1696.32 हेक्टेयर जंगल प्रभावित हुआ है। अब तक गढ़वाल में 532, कुमाऊं में 598 और रिजर्व फॉरेस्ट में 112 आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। राज्य में वनाग्नि से अब तक गढवाल में एक व कुमाऊं में नौ लोगों की मौत हो चुकी है। साल 2023 में 718 आग लगने की घटनाएं हुई थीं और उस वक्त 862.41 हेक्टेयर क्षेत्र प्रभावित हुआ था।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के 60 फीसदी जिले हर साल जंगल की आग से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। आग लगने की इन घटनाओं से देश को हर साल करीब 1,100 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। देश में कुल 700 से अधिक जिले हैं, जिसमें से करीब 400 जिलों में मौजूद जंगल हर साल आग की चपेट में रहते हैं। इनमें से 20 जिले मुख्य रूप से पूर्वोत्तर में स्थित हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 2003 से 2016 के बीच देश के इन 20 जिलों में जंगल में आग लगने की 44 फीसदी घटनाएं हुई।

जंगलों में आग मुख्यत मानवीय गतिविधियों या आकाशीय बिजली गिरने जैसी प्राकृतिक घटना के कारण लगती है। अध्ययनों के अनुसार लगभग 90 प्रतिशत मामलों में जंगलों की आग मानव जनित होती हैं। मानव जनित लापरवाही, जैसे कि कैंप फायर को बिना बुझाए छोड़ दिया जाना या बीड़ी/सिगरेट पीने के बाद कहीं भी लापरवाही से फेंक देना आदि जंगलों में आग फैलने की मुख्य वजहें हैं। जानबूझकर की गई आगजनी की हरकतें, कूड़े-मलबे आदि को गलत तरीके से जलाना और आतिश बाजी आदि भी जंगल की आग के अन्य प्रमुख कारणों में से हैं।

प्राकृतिक कारणों मे आकाशीय बिजली प्रमुख कारणों में से एक है। इसके अतरिक्त उच्च वायुमंडलीय तापमान और सूखापन जंगलों में आग लगने के लिये अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण धीरे-धीरे पृथ्वी की सतह पर हवा का तापमान बढ़ रहा है, जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड और जंगल की आग फैलने की प्रतिशतता में वृद्धि हुई है।

जंगल की आग के तीन बुनियादी प्रकार होते हैं। पहला क्राउन आग में पेड़ ऊपर तक जल जाते हैं। ये सबसे तीव्र और खतरनाक जंगली आग होती है। दूसरा सतह की आग केवल सतह के कूड़े और मलबे को जलाती है। ये सबसे साधारण आग है जो जंगल को कम से कम नुकसान पहुँचाती है। तीसरा ग्राउंड फायर या उपसतह आग में मृत वनस्पति जलने के लिये पर्याप्त शुष्क हो जाती हैं, इनमें लगी आग को उपसतह की आग कहा जाता है। ये आग बहुत धीमी गति से चलती है, लेकिन पूरी तरह से इससे बाहर निकलना या इस आग को बुझाना बहुत मुश्किल होता है।

आज जंगल की आग एक वैश्विक चिंता बन गई है। क्योंकि इससे दुनिया के कई देशों को भारी नुकसान उठाना पड़़ रहा है। पिछले कुछ वर्षो में साइबेरिया में जंगलों की आग ने भारी नुकसान किया। मॉस्को टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इस घटना में साइबेरिया की लगभग 40 मिलियन एकड़ भूमि पर फैली वनस्पति जलकर राख हो गई थी। उत्तरी अमेरिका में लू चलने के कारण कनाडा के लिटन शहर में तापमान 49.6 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था। जिससे जंगल की आग की एक श्रृंखला बन गई थी। तुर्की, ट्यूनीशिया और इटली को भी जंगल की आग का सामना करना पड़ा। स्पेन के जंगलों में लगी आग से भी काफी नुकसान हुआ। इस आग का धुआं कई किमी दूर फैल गया था।

वर्ष 2019 व 2022 में अमेजन के जंगलों में भीषण आग के विषय में हम सभी ने सुना व पढ़ा। ब्राजील का यह वनक्षेत्र दुनिया का कुल 20 प्रतिशत ऑक्सीजन पैदा करता है। यह कुल 10 प्रतिशत जैव-विविधता वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र को पृथ्वी के फेफड़े माना जाता है। यह जलवायु को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कुल मिलाकर जंगलों मे किसी भी तरह की आग से पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव होता है। जैसे मूल्यवान लकड़ी संसाधनों का नुकसान, जलग्रहण क्षेत्रों का क्षरण, जैव विविधता का क्षरण, पौधों और जानवरों के विलुप्त होने का डर, वैश्विक तापमान का बढ़ना, वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड के प्रतिशत में वृद्धि, माइक्रॉक्लाइमेट (किसी विशेष छोटे जगह की जलवायु) में परिवर्तन, मृदा अपरदन, ओजोन परत को नुकसान व ग्रामीण तबके के लोगों की आजीविका का नुकसान आदि।

जंगलों की सुरक्षा स्थानीय लोगों के सहयोग से ही सम्भम है। समस्या यह है कि वन विभाग लोगों से यह अपेक्षा तो करता है कि वह आग लग जाने के बाद उसकी मदद करें लेकिन वनों के प्रबन्धन व लाभ में लोगों को हिस्सेदारी नहीं देना चाहता। समुदाय की भागेदारी से ही वनों को बचाया जा सकता है क्योंकि आग लगने का पता सबसे पहले ग्रामीणों को ही लगता है और वही फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को इसके बारे में सूचना देते हैं।

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